साल 2100 तक विश्व के दो तिहाई ग्लैशियर पिघल जाएंगे, यदि वैश्विक उत्सर्जन की रफ्तार नही थमी तो हालात बहुत बुरे होंगे। यह बात वैज्ञानिकों के कही है। जबकि पेरिस संधि के तहत वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्शियस तक रखना था और वह लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। हिन्दू कुश हिमालयी क्षेत्रों का पानी 25 करोड़ लोगों के लिए जीवन है और साथ ही 1.65 अरब लोग इससे निकली नदियों का जल ग्रहण करते हैं।
इस ग्लेशियर में विश्व की 10 प्रमुख नदिया हैं जिसमे गंगा, सिंधु, येल्लो, मकोंग और इर्रवाददय शामिल है, यह नदियां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लोगो को भोजन, पानी, ऊर्जा, हवा और आय का स्त्रोत हैं। इसके पिघलने से लोगो पर काफी प्रभाव होगा। वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी। यह रिपोर्ट काठमांडू स्थित इंटरनेशनल इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट इन नेपाल ने प्रकाशित की है।
इस रिपोर्ट को तैयार होने में पांच साल का वक्त लगा। इसमे 350 रिसर्चर और पालिसी एक्सपर्ट थे। 185 संगठन, 210 लेखक, 20 समीक्षक और 125 बाहरी समीक्षक थे। साल 2015 में पेरिस समझौते के मुताबिक इस शताब्दी में तापमान को 2 डिग्री सेल्शियस से नीचे रखना था। हाल ही इसके बाबत कगरच के लिए पोलैंड में कॉपी 24 की बैठक का आयोजन हुआ था।
विश्व के सबसे बड़े प्रदूषक सऊदी अरब और अमेरिका ने अक्टूबर में जारी हुई रिपोर्ट का विरोध किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रों को एक दशक में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल आधे से भी कम करना होगा। इस नई रिपोर्ट के अनुसार यदि 1.5 डिग्री सेल्शियस के तापमान को भी हासिल कर लिया गया तो हिमालयी क्षेत्रों में 2 डिग्री तापमान में वृद्धि होगी। हिमालयी गलेशियर का निर्माण 7 करोड़ साल पूर्व हुआ था और यह तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील है।
यदि ग्लेशियर सिकुड़ता है तो सैकड़ों झीलों में उफान आयेह6 और बाढ़ की संभावना है। आंकड़ों के मुताबिक एक दशक में ऐसे इलाकों में झीलों की संख्या 4260 है, जबकि 1990 में यह 3350 थी।