सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने बुधवार को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार द्वारा लोकपाल की नियुक्ति और राज्य में लोकायुक्त अधिनियम पारित किए जाने के आश्वासनों को पूरा के कारण भूख हड़ताल शुरू कर दी है।
पत्र लिखकर दी थी चेतावनी :
एक महीने पहले अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर 30 जनवरी 2019 से आमरण अनशन शुरू करने की चेतावनी दी है। अन्ना ने कहा, ‘भ्रष्टाचार को रोकने वाला लोकपाल लोकायुक्त कानून तो बन गया। अब सिर्फ कानून पर अम्ल करना है।’
पत्र में यह भी लिखा था की नौ महीने बीत चुके हैं, फिर भी मांगें पूरी नहीं हुई हैं। इसलिए, मैं 30 जनवरी को अपने गांव रालेगण सिद्धि में भूख हड़ताल पर रहूंगा।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को सत्ता में आए साढ़े चार साल हो गए, लेकिन अब तक इस कानून पर केंद्र सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इस बाबत मैंने मोदी सरकार को 32 बार पत्र लिखा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। सरकार लगातार लोकपाल की अनदेखी कर रही है।
अन्ना हजारे की ये है मांग :
मीडिया में अपनी मांगों को रखते हुए अन्ना हजारे ने कहा की जब तक सरकार लोकायुक्त अधिनियम पारित करने, लोकपाल की नियुक्ति और किसानों के मुद्दों से निपटने के लिए सत्ता में आने से पहले वादे को पूरा नहीं करती, तब तक हड़ताल जारी रहेगी। राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल की नियुक्ति और राज्यों में लोकायुक्त के अलावा, हजारे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों और कुछ चुनावी सुधारों को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
हजारे ने सुबह महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में अपने गांव रालेगण सिद्धि में पद्मावती मंदिर में पूजा-अर्चना की। फिर वह छात्रों, युवाओं और किसानों के साथ यादवबाबा मंदिर में एक जुलूस में गए और अपनी भूख हड़ताल शुरू करने के लिए वहां बैठ गए।
पिछले साल रामलीला मैदान में किया था अनसन :
महाराष्ट्र के मंत्री गिरीश महाजन, जो सरकार और हजारे के बीच एक दूत के रूप में काम कर रहे हैं, ने मंगलवार को कार्यकर्ता को आंदोलन को रद्द करने का आग्रह किया, जिसमें दावा किया गया कि उनके द्वारा की गई लगभग सभी मांगें पूरी हुईं लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। अन्ना हजारे ने निर्णय किया हुआ है की जबतक लोकपाल कानून सच्चाई नहीं बन जाता वे अनशन बंद नहीं करेंगे।
एक कार्यकर्ता ने कहा किजब उन्होंने पिछले साल मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन शुरू किया था तब भी मुख्यमंत्री ने मध्यस्थता की थी। हजारे ने कहा था कि उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा लिखित मांगें पूरी करने के आश्वासन के बाद ही आंदोलन वापस लिया था।