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    2002 में हुए गोधरा कांड में आज हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है, गुजरात सरकार एसआईटी के आये फैसला का विरोध करते हुए ये मामला हाईकोर्ट ले गयी थी। आज उस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दोषियों की सजा कम कर दी और गुजरात की तत्कालीन सरकार की लापरवाही बताते हुए फटकार लगायी है।

     

    2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच को आग लगाने के मामले में एसआईटी की कोर्ट ने 31 को दोषी पाया था और 63 को बरी कर दिया था। इसमें एसआईटी ने 11 को फांसी की सजा सुनाई थी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत के इस निर्णय के खिलाफ गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें गुजरात सरकार ने आरोपियों को बरी करने के खिलाफ और सजा की मांग बढ़ाने की मांग की थी।

     

    इस मामले की सुनवाई गुजरात हाईकोर्ट में चल रही थी, जिसमें कोर्ट ने आज निर्णय दिया, जिसमें फांसी की सजा के सभी बंदियों की सजा को कम कर के आजीवन कारावास में बदल दिया। आगे कोर्ट ने तत्कालीन सरकार पर सख्त टिपण्णी करते हुए कहा कि सरकार उस समय कानून व्यवस्था को बनाये रखने में असफल साबित हुई। कोर्ट ने रेलवे पर भी टिपण्णी की कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार के साथ-साथ रेलवे भी कानून व्यवस्था बनाये रखने में विफल रहा। इसके साथ ही कोर्ट ने पीड़ित परिवार वालो को 10-10 लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया है।

     

    इस मामले को हाईकोर्ट ले जाने का जो गुजरात सरकार का जो मक़सद था वो तो पूरा नहीं हो सका और आरोपियों की सजा और काम करवा दी।

     

    यह मामला 2002 का है 27 फरवरी की सुबह जब अहमदाबाद से 130 किमी दूर स्थित गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे एस6 से धुआं निकलने लगा था, धीरे-धीरे पुरे डिब्बे में आग बढ़ गयी इस आग से 59 लोग मारे गए। इसमें से अधिकतर लोग अयोध्या रामजन्मभूमि से आ रहे थे। इस मामले में पहले ये माना जा रहा था कि ये एक दुर्घटना है, परन्तु 2004 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी, जनवरी 2005 में उस कमेटी की रिपोर्ट आयी थी उस रिपोर्ट के अनुसार साबरमती एक्सप्रेस के एस6 में आग लगने का कारण दुर्घटना नहीं था, आग को कुछ बाहरीतत्वों ने लगाई थी।

     

    गोधरा में हुई आगजनी के बाद पुरे राज्य में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, जिसके कारण 1000 लोगों से भी ज्यादा लोगो की मौत हो गई थी। इस पुरे दंगो का दाग राजनितिक पार्टी बीजेपी और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगता है। उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इस पर सख्त बोलै था इन्होने मोदी को कहा था कि उन्हें राजयधर्म का पालन करना चाहिए था, अटलजी ने आगे कहा कि राजा के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता है, उनका ये इशारा गुजरात में बड़े पैमाने पर हुई साम्प्रदायिक हिंसा के लिए था। इस मामले को लेकर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल हमेशा मोदी सरकार की घेराबंदी करते रहे है।

     

    गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार को 10-10 लाख रूपये देने का आदेश दिया है और साथ ही निर्देश दिया है कि ये रकम पीड़ितों तक 6 हफ्तों तक पहुंचे।