उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले समीकरणों का बदलना जारी है। मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में समाजवादी पार्टी के विधायक को शामिल न करने पर अखिलेश यादव ने कांग्रेस का शुक्रिया अदा करते हुए तंज कसा और कहा कि “कांग्रेस ने समाजवादियों की राह आसान कर दी।”
अखिलेश के इस बयान को उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की कांग्रेस से बढती दूरी के तौर पर देखा गया। वहीँ कांग्रेस ने राज्य के महागठबंधन में अपने लिए दरवाजे बंद होते देख कर भावुक अंदाज में डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है।
यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने अखिलेश यादव की तरफ दोस्ती का हाथ बढाते हुए कहा “समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय नेता के वक्तव्य में उनकी नाराजगी नजर आ रही है। नाराजगी कभी बेगानों से नहीं होती है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का नेतृत्व आपस में बात करके इन चीजों को सुलझा लेंगे। जनता चाह रही है कि हम सब लोग मिलकर चुनाव लड़ें।”
दरअसल अखिलेश ने न सिर्फ कांग्रेस से नाराजगी दिखाई बल्कि गैर भाजपा और गैर कांग्रेस तीसरे मोर्चे के गठन की भी हिमायत की। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव से अखिलेश यादव की मु;अकाट तो नहीं हो सकी लेकिन अखिलेश ने उनके प्रयासों को समर्थन दिया और कहा कि जल्द ही हैदराबाद आ कर वो इनसे (केसीआर) से मिलेंगे।
दरअसल कांग्रेस जानती है कि उत्तर प्रदेश में उसका कोई आधार नहीं है और वो चौथे नंबर की पार्टी बन चुकी है। राजनितिक हलकों में कांग्रेस मुक्त महागठबंधन की सुगबुगाहट भी तेज है। सबकी नज़रें 15 जनवरी पर टिकी है। 15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन है और उस दिन 2019 के चुनाव में वो कुछ महत्वपूर्ण घोषणा कर सकती हैं।
सूत्रों के अनुसार सपा+बसपा+रालोद का समीकरण बन चूका है बस औपचारिक घोषणा होनी बाकी तरह गई है। कांग्रेस जानती है कि बिना यूपी फतह किये मोदी को रोकना कठिन होगा इसलिए वो अखिलेश और मायावती के बिना यूपी में उतरने का जोखिम नहीं लेना चाहती। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो भाजपा और सपा+बसपा+रालोद के बीच बुरी तरह पिस जायेगी। इसलिए कांग्रेस ने अखिलेश की नाराजगी की बात सामने आते ही तुरंत ही डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की।