अमेरिका के नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा एक शोधपत्र ने कहा कि नोटबंदी ने 8 नवंबर, 2016 के बाद की अवधि में भारत की आर्थिक गतिविधि को प्रभावित किया, लेकिन इसका प्रभाव 2017 के मध्य तक देखने को मिला।
भारत सरकार ने 8 नवम्बर 2016 को भारत में 500 एवं 1000 रूपए के नोटों को अवैध करार के नोटबंदी क्र दी थी जिससे देश की 86 प्रतिशत मुद्रा अचानक अवैध हो गयी थी। इसके बाद लोगों को इसका नुक्सान लम्बे समय तक उठाना पड़ा था। गीता गोपीनाथ अगले महीने से IMF के मुख्य अर्थशास्त्री का pad संभालेंगी।
पूरा बयान :
US के एक शोधपत्र की रिपोर्ट जिसका शीर्षक ‘कैश एंड द इकॉनमी: एविडेंस फ्रॉम इंडिया’स ड़ीमोनीटाईज़ेशन’ था जिसकी सह लेखिका प्रसिद्द अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ हैं, उसमे लिखा है “हमारे अन्वेषण के नतीजे बताते हैं की नोटबंदी की तिमाही में नोटबंदी की वजह से 2 प्रतिशत की वृद्धि दर घट गयी थी।”
“हम मानते हैं की पूर्ण विकसित वित्तीय बाजारों में नकदीरहित लेनदेन सही है लेकिन भारतीय बाज़ार में नकदी अभी भी लेनदेन का एक अहम् हिस्सा है एवं आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।”
नोटबंदी से सम्बंधित विभिन्न आंकड़े :
शोधपत्र में कहा गया कि नोटबंदी से रात्रि के दौरान की जाने वाली आर्थिक गतिविधियों में भी गिरावट आयी और 2016 में नवंबर-दिसंबर महीने के दौरान रोजगार में तीन प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी की घोषणा वाली तिमाही यानी वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि दर सात प्रतिशत रही थी जो चौथी तिमाही में और कम होकर 6.1 प्रतिशत पर आ गयी थी।
वित्त वर्ष 2017-18 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी। नोटबंदी से पहले की छह तिमाहियों में औसत आर्थिक वृद्धि दर करीब आठ प्रतिशत रही थी। हालांकि नोटबंदी के बाद की सात तिमाहियों में यह औसत करीब 6.8 प्रतिशत पर आ गयी
बताये नोटबंदी के कुछ दीर्घकालिक फायदे :
यह शोध मुख्यतः कम समय में होने वाले प्रभावों पर था लेकिन शोध में बताया गया की नोटबंदी के कुछ दीर्घकालिक गायदे भी हो सकते हैं जैसे: कर संग्रह में सुधार, नकदी के बजाय बचत के लिये वित्तीय तरीकों को अपनाने तथा बिना नकदी के भुगतान आदि। हालांकि हम छोटे समय की बात करें तो नोटबंदी से हमारी अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचा था।