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    राम मंदिर

    22 अक्टूबर 1990, राजीव तुली अयोध्या जाते वक़्त दिल्ली यूनिवर्सिटी में बी कॉम आखिरी वर्ष के छात्र थे। उनकी माँ ने माथे पर तिलक लगा कर भेजा था और उनके परिवार ने मान लिया था कि वो अपने बेटे को दुबारा नहीं देख पायेंगे।

    तुली तब 20 वर्ष के थे, वो उन कारसेवकों में से एक थे जो बाबरी मस्जिद के जगह पर राम मंदिर को देखने का सपना लिए हुए थे।

    तुली ने कहा “हमें खतरे का अंदाजा था। वहां (उत्तर प्रदेश) पर विरोधी सरकार (मुलायम सिंह यादव) थी और हम जानते थे कि कुछ भी हो सकता है। हमें हमें पता पता था कि हमें जाना है। कोई भी सरकार हमें रोक नहीं सकती।

    30 अक्टूबर और 2 नवम्बर 1990, अयोध्या में पुलिस ने फायरिंग कर दी जिसमे 16 लोग मारे गए। दो साल बाद कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढाह दिया। ये ठीक 26 साल पहले की बात थी।

    अब एक सीनियर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता तुली एक बिजनेस चलाते हैं। वो उन चेहरों में से एक हैं जो राम जन्मभूमि आन्दोलन के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने को तैयार थे।

    यदि तुली के राम मंदिर आन्दोलन में शामिल होने के पीछे उनके परिवार का आरएसएस से जुड़ाव था। तो अब एक युवा वकील जो कोर्ट में राम मंदिर के समर्थन में केस लड़ रहे हैं वो उस परिवार में बड़े हुए जो कांग्रेस का समर्थक था।

    हिन्दू पहचान, संस्कृति और धर्म वो धुरी है जिसके इर्द गिर्द राम मंदिर आन्दोलन फैलता है। आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद् दावा करता है कि राम मंदिर आन्दोलन का वर्तमान स्वरुप अब समाज के विभिन्न तबकों से निकले युवाओं से भरा हुआ है जिनके परिवार का कोई सम्बन्ध वीएचपी और आरएसएस से नहीं है।

    राज्य सभा संसद और आरएसएस के विचारक राकेश सिन्हा कहते हैं कि ये युवा मंदिर आन्दोलन के साथ एक सांस्कृतिक जुडाव महसूस करते हैं। वो मंदिर आन्दोलन को स्वतंत्रता आन्दोलन से जोड़ते हैं

    वो कहते हैं कि “युवा ये स्वीकार करते हैं कि ये भगवान राम की जन्मभूमि है और बाबर एक आक्रमणकर्ता था। पुरातत्व विभाग के कई सर्वे में भी ये सामने आ चूका है कि वहां पहले मंदिर था और मस्जिद बाद में बना।”

    इतिहासकार शिरिन मूसवी कहती हैं कि वह इन अभिलेखों के बारे में संदेहस्पद है। वह कहती हैं कि एएसआई रिपोर्ट जिसे अक्सर आरएसएस कार्यकर्ताओं द्वारा उद्धृत किया जाता है, विसंगतियों पर शिक्षाविदों द्वारा “झुकाव” के आधार पर तैयार किया गया है।

    वो बताती हैं कि “2003 में, एएसआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को बताया कि एक मस्जिद के नीचे एक मंदिर का सबूत मौजूद था। यह इमारत आगामी मुगल वास्तुकला का एक उदाहरण था, इसका मंदिर के साथ कुछ लेना देना नहीं था। उन्होंने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म का दुरुपयोग करने के लिए यह सब किया जा रहा है।”

    इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-दिल्ली के पूर्व छात्रों भारत शर्मा के लिए, साइट पर एक मंदिर नहीं होने के कारण राम का जन्मस्थान हिंदू पहचान के “दमन” का एक और उदाहरण है। उनका कहना है कि क्रोध हिंदू उत्सवों और परंपराओं पर लगाई गई सीमाओं से आंशिक रूप से उत्पन्न होता है।

    वो कहते हैं “दिवाली पर पटाखे मत जलाओ, होली मत खेलो, सबरीमाला में परंपराओं के छेड़छाड़, जलिकट्टू पर रोक  जैसे मुद्दों पर गुस्सा है। इस देश की पहचान हिन्दू है, संविधान की मूल प्रति में हिंदू इमेजरी है, लेकिन हिंदुओं की आबादी गिर रही है। यह आंदोलन हमारी हिंदू पहचान पर जोर देने के बारे में है।”

    राजनितिक विरोधी कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में फायदा लेने के लिए ये सब किया जा रहा है और ये सब भाजपा की साजिश है। लेकिन सोशल मिडिया के जमाने में युवा वर्ग तेजी से इस आन्दोलन से जुड़ने लगे हैं और आरएसएस इसे मंदिर आन्दोलन 2.0 का नाम देते हैं तो 1990 की तुलना में ज्यादा युवा है शिक्षित है।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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