साल 2015 के जलवायु परिवर्तन समझौते के बाद 200 राष्ट्र के प्रतिनिधि पोलैंड में आयोजित बैठक में शरीक हुए हैं। यह बैठक दो हफ़्तों तक चलेगी और इसमें पर्यावरण से सम्बंधित चेतावनी और जलवायु परिवर्तन से निपटने के बाबत बातचीत की जाएगी। यह वार्ता साल 2015 में हुए ऐतिहासिक समझौते के बाद हुई है जिसमे वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
इस कार्यक्रम के 14 दिसम्बर तक अंत होने की सम्भावना हैं क्योंकि यह तय दिन से एक दिन पूर्व ही शुरू हो गया था। संयुक्त राष्ट्र की पूर्व अधिकारी क्रिस्टीना फिगुरेस ने कहा कि भूराजनीतिक स्थिरता के बावजूद, जलवायु परिवर्तन एक सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है।
इस बैठक के आयोजन को जी -20 से समर्थंन मिला है। जी-20 देशों के सदस्यों में से 19 मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद इस समझौते से अलग होने का ऐलान कर दिया था। अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जिसने इस समझौते से खुद को बाहर किया है।
पेरिस समझौते को साल 2015 में अमल में लाया गया था इसमें अंतगर्त सभी देशों ने वैश्विक तापमान में वृद्धि से रोकने की प्रतिबद्धता दिखाई थी। तापमान में वृद्धि कोयला, गैस और तेल से होता है। यह समझौता साल 2020 में लागू होगा। विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्सर्जन करने वाले देश चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत है। इनमे पांच राष्ट्र रूस है लेकिन उसने इस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
जलवायु समझौते से कोई भी राष्ट्र अलग हो सकता है बशर्ते नोटिस प्रभावी होने के तीन सालों बाद दिया जा सकता है और अगले एक साल में इस समझौते से नाता तोडा जा सकता है। जून 2017 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस समझौते से अलग होने का ऐलान किया था।
इस समझौते में वित्तीय सहायता धनी देश करेंगे। ताकि स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल करने में गरीब देशों को मदद मिल सके। इसके लिए हर साल 100 करोड़ की राशि जरुरी होगी, जिसकी शुरुआत साल 2020 से होगी।