आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तेलंगाना के चुनावी रण को सत्ताधारी टीआरएस के लिए मुश्किल बना दिया है।
इसदिन विधानसभा भंग हुई उस दिन टीआरएस प्रमुख और राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रेशाखार राव ने दावा किया था कि चुनाव मे टीआरएस 119 मे से 100 सीटें जीतेगी लेकिन जैसे जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही है जमीनी हकीकत बदली जा रही है और टीआरएस को ये एहसास होता जा रहा है कि इस बार सत्ता मे वापसी इतनी आसानी से नहीं होने वाली।
तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने सत्ताधारी टीआरएस के खिलाफ ‘प्रजाकुट्टमी’ या महागठबंधन बनाने मे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नायडू और राहुल गांधी की मुलाक़ात ने राज्य के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। अपने पुराने प्रतिद्वंदी केसीआर को धूल चटाने के लिए कॉंग्रेस से ज्यादा सीटों की मांग करने के बजाए नायडू ने सारा ध्यान गठबंधन कि मजबूती पर दिया।
2014 मे 15 सीटें जीतने वाली टीडीपी अगर इस बार सिर्फ 14 सीटों पर लड़ने के लिए भी तैयार हो गई तो इसकी मुख्य वजह ये थी कि टीआरएस विरोधी वोटों का बिखराव न हो और गठबंधन ज्यादा से ज्यादा सीटें लाये।
टीडीपी अपने मजबूती वाले सीट पटनचेरु और हुजूराबाद जैसी सीटों कि कुर्बानी देने से भी पीछे नहीं हटी। नायडू ने तेलंगाना मे टीडीपी कार्यकर्ताओं से कहा ‘हमारा गठबंधन जीतना चाहिए। सीटों के लिए दवाब मत डालिए, ये दवाब ‘प्रजाकुट्टमी’ के उम्मीदों पर पानी फेर सकता है।’
कुकटपल्ली मे नायडू ने सहानुभूति कार्ड खेला। उन्होने एन टी रामाराव कि पोती नंदामुरी सुहासिनी को टिकट दिया। नंदामुरी के पिता नंदामुरी हरी कृष्ण कि अभी हाल ही मे एक रोड एक्सिडेंट मे मृत्यु हो गई थी।
कुकटपल्ली मे आंध्र प्रदेश के प्रवासियों की बहुलता है और उनका झुकाव एनटीआर और हरी कृष्णा कि तरफ है। नायडू को लगता है कि ये फैक्टर इस सीट को निकालने मे मदद करेगा।
तेलंगाना मे 7 दिसंबर को वोट डाले जाएँगे जबकि 11 दिसंबर को चुनाव परिणाम कि घोषणा कि जाएगी।