देश के 4 बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना चुनाव के दौर से गुजर रहे हैं। इन चारों राज्यों में से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बहुत उम्मीदे हैं। क्योंकि पिछली बार 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुत कम अंतर से हार गई थी। 2013 में भाजपा और कांग्रेस के वोटों में मात्र 0.7 फीसदी का अंतर था।
लेकिन कांग्रेस की उम्मीदें 2 कारणों से धूमिल हो सकती है। पहला कारण हैं अजीत जोगी। 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अजीत जोगी कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे।
2003 के चुनावों में सत्ता भाजपा के पास आ गई और अब तक उसी के पास है। अजीत जोगी ने 2016 में कांग्रेस से निकल कर अपनी एक नयी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) का गठन कर लिया।
कांग्रेस की उम्मीदों की धूमिल होने का दूसरा कारण हो सकता है अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) का मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी और सीपीआई के साथ गठबंधन।
अगर कांग्रेस, बसपा और सीपीआई के वोट शेयर को मिला लें तो 2003 के बाद से तीनो राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इनका वोट शेयर प्रतिशत भाजपा के वोट प्रतिशत से ज्यादा है।
छत्तीसगढ़ में 2013 में कांग्रेस ने 40.03 फीसदी वोट हासिल किये थे जबकि बहुजन समाज पार्टी ने 4.3 फ़ीसदी और सीपीआई ने 5.12 फीसदी वोट हासिल किये थे।
अगर इन तीनों का वोट मिला लें तो 49.45 फीसदी वोट इन तीनो को मिले जबकि भाजपा ने 41.03 फीसदी वोट हासिल किये। अगर 2013 में समीकरण कांग्रेस+बसपा+सीपीआई = 49.45% होता तो विधानसभा का नज़ारा कुछ और ही होता।
तो क्या कांग्रेस ने बसपा के साथ गठबंधन करने का सुनहरा मौका गँवा दिया ?
दोनों पार्टियों की तरफ से कोशिशें तो काफी हुई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
बसपा + सीपीआई का वोट शेयर करीब एक चौथाई सीटों पर जीत के अंतर से ज्यादा था।
इस समीकरण में अजीत जोगी के जुड़ जाने से हालात काफी जटिल और अप्रत्याशित हो गए हैं। क्योंकि ये पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही है।
अजीत जोगी कांग्रेस से निकल कर आये हैं इसलिए इतना तो तय है कि वो भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के वोट को नुक्सान पहुंचाएंगे। बसपा+सीपीआई+जनता कांग्रेस(जोगी) के बीच सीटों का बंटवारा इस बात पर मुहर लगाता है।
जिन 55 सीटों पर जोगी की पार्टी चुनाव लड़ रही है उन सीटों पर 2008 और 2013 में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था।
मजबूत क्षेत्रीय नेता के पार्टी से निकल जाने पर उस पार्टी को नुक्सान होना तय है। भाजपा ये कर्नाटक में देख चुकी है। जब येदुरप्पा ने पार्टी छोड़ दी थी तो भाजपा को 2013 में सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
2008 में उमा भारती के पार्टी से बाहर हो जाने पर मध्य प्रदेश में भाजपा के वोट शेयर और सीट शेयर दोनों गिर गए थे।
कांग्रेस के समर्थक आधार पर अजित जोगी कितने प्रभावी सिद्द होते हैं ये छत्तीसगढ़ के नतीजे का एक महत्वपूर्ण कारक होगा।