कर्नाटक सरकार ने शनिवार को विवादास्पद 18 वीं सदी के शासक पूर्व मैसूर साम्राज्य टीपू सुल्तान के की जयंती मनाई, जिससे भाजपा और कई हिंदू संगठनों भौंहे टेढ़ी हो गई। भारी विरोध की आशंका के मद्देनजर पुरे कांग्रेस में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
टीपू को ‘धार्मिक कट्टरपंथी’ कहते हुए, राज्य भाजपा इकाई ने जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार से ‘टीपू जयंती’ न मनाने का आग्रह किया था। प्रशासन ने कई इलाकों में निषेधाज्ञा लागू कर दिया है वहीँ कई स्थानों पर धारा 144 लागू किया गया है।
अधिकारियों ने कहा है कि पक्ष या विपक्ष में किसी प्रकार की रैली या झांकी निकालने की अनुमति नहीं है। कोडागु और चित्रदुर्ग और तटीय क्षेत्रों के जिलों में विस्तृत सुरक्षा व्यवस्था की गई है, जहां स्थानीय समुदाय टीपू जयंती का विरोध कर रहा है।
कोडागु जिले में टिपू जयंती विरोदी होराता समिति ने शनिवार को बंद करने का आह्वान किया है। 2015 में इस जिले में टीपू जयंती के आधिकारिक उत्सव में भारी हिंसात्मक विरोध प्रदर्श हुआ था जिसमे विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ता कुटप्पा की मौत हो गई थी।
कोडागु के पुलिस अधीक्षक सुमन डी पनेकेरा ने संवाददाताओं से कहा कि स्थिति अब तक शांतिपूर्ण है और आगे कोई अप्रिय घटनाएं ना हो ये सुनिश्चित करने के लिए पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि दुकानों और व्यापार प्रतिष्ठानों को जबरदस्ती बंद कराने की अनुमति नहीं दी जाएगी। किसी को भी कानून व्यवस्था भंग करने नहीं दिया जाएगा।
विधानसौधा (बेंगलुरु) के आसपास अधिकारियों के साथ लगभग 500 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। शहर के विभिन्न क्षेत्रों के डीसीपी अपने संबंधित क्षेत्राधिकार में सुरक्षा का प्रभारी होंगे। बेंगलुरु पुलिस आयुक्त टी सुनील कुमार ने कहा, लगभग 15,000 पुलिसकर्मी शहर के सुरक्षा का प्रबंधन करेंगे।
विधानसौधा में टीपू जयंती उत्सव उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर की उपस्थिति में आयोजित किया जाएगा, क्योंकि मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी स्वास्थ्य कारणों से उपस्थित नहीं होंगे।
टीपू सुल्तान कोडागु जिले में एक विवादास्पद व्यक्ति है। वहां के लोगों का मानना है कि टीपू ने उनके हजारों पुरुषों और महिलाओं को बंदी बना लिया था और इस्लाम क़ुबूल करने के लिए यातनाएं दी थी।
इस तरह के दमनकारी इतिहास के इतर कई इतिहासकारों का मानना है कि टीपू एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शासक था जिसने अंग्रेजों से टक्कर ली। जबकि भाजपा और कुछ हिंदू संगठन टीपू को धार्मिक कट्टरपंथी और क्रूर हत्यारा के रूप में देखते हैं। कुछ कन्नड़ संगठन टीपू को कन्नड़ विरोधी कहते हैं, जिसने स्थानीय भाषा के ऊपर फ़ारसी को बढ़ावा दिया।