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    मध्य प्रदेश चुनाव

    अगले महीने चुनाव देश के 5 राज्यों में है लेकिन सबकी नज़र बस 3 राज्यों पर टिकी है। वो तीन राज्य है मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान।

    दिल्ली तक का रास्ता हिंदी बेल्ट के राज्यों से होकर गुजरता है। ये हिंदी बेल्ट ही सत्ताधारी पार्टी भाजपा की सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए इन तीन राज्यों के चुनाव में भाजपा का ही सब कुछ सबसे ज्यादा दांव पर लगा है।

    मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से भाजपा का शासन है जबकि राजस्थान में हर 5 साल पर सत्ता बदलती रहती है।

    2013 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था और उम्मीदवार घोषित होते ही उन्होंने धुआंधार चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया था। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा अपना किला बचाने की जंग लड़ रही थी और राजस्थान में उसे कांग्रेस को पटखनी देनी थी।

    मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 10 सालों का सत्ता विरोधी रुझान भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह की अपनी पहचान और सियासी जमीन थी इसके बावजूद 2013 के विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी भाजपा के पोस्टर बॉय बन कर उभरे। हिन्दू ह्रदय सम्राट की उपाधि लिए जब नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए आये तो सत्ता विरोधी रुझान और बाकी सारे मुद्दे गौण हो गए, केंद्र में रह गए तो बस नरेंद्र मोदी।

    मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपनी सत्ता बरकरार रखी जबकि राजस्थान में उसने कांग्रेस से सत्ता छीन  ली थी। इन चुनाव परिणामों को मोदी लहर कहा गया।

    इस बार भी लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इन तीनों राज्यों में विधानसभा चनाव हैं। फर्क बस इतना है कि पिछली बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले थे जबकि इस बार वो पिछले साढ़े 4 साल से प्रधानमंत्री हैं।

    इस बार राज्य सरकारों के  सत्ता विरोधी फैक्टर के साथ साथ केंद्र सरकार के भी सत्ता विरोधी फैक्टर से भी लड़ना है भाजपा को क्योंकि लोकसभा चुनावों से ठीक पहले अपने ही गढ़ में हारना मोदी के छवि को चुनौती है।

    मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 2013 में भाजपा ने 165 सीटें जीती थी। आम तौर पर सत्ता बचाने के लिए लड़ रही पार्टी की सीटें कुछ कम होती है लेकिन इन चुनावों में भाजपा ने पिछली बार से 22 सीटें अधिक हासिल की थी। जबकि कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 58 सीटें आई थी। उस वक़्त कहा गया था कि ये नरेंद्र मोदी की लहर है। लेकिन इस बार हालात काफी बदले हुए हैं।

    भाजपा 15 सालों के सत्ता विरोधी फैक्टर का सामना कर रही है। उसके अलावा शिवराज सिंह चौहान साल भर किसानों के आंदोलन, आदिवासियों के आंदोलन से जूझते रहे हैं। एट्रोसिटी एक्ट पर सवर्णों की नाराजगी ने भी भाजपा की मुश्किलें काफी बढ़ा दी है।

    भाजपा को मुख्यतः सवर्णों की पार्टी माना जाता है लेकिन जिस तरह से केंद्र सरकार ने एट्रोसिटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा उससे पार्टी के परंपरागत वोट बैंक में काफी नाराजगी देखने को मिली है। इस एक्ट के खिलाफ सबसे ज्यादा और तीव्र प्रदर्शन मध्य प्रदेश में ही देखने को मिला था।

    2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को आदिवासी समुदाय का जबरदस्त समर्थन मिला था। अनुसूचित जनजाति वर्ग के 47 सीटों में से 32 सीटों पर भाजपा ने कब्ज़ा जमाया था जबकि कांग्रेस को सिर्फ 15 सीटें मिली थी। इसके अलावा राज्य में सामान्य श्रेणी की 31 सीटों पर भी आदिवासी वोट ही हार जीत तय करते हैं। लेकिन इस बार जमीनी हालत अलग हैं। आदिवासी वर्ग में नाराजगी का ही परिणाम था कि भाजपा को रतलाम-झबुआ के उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इस बार आदिवासी वोट पाने के लिए भाजपा को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

    भाजपा से सत्ता छीनने की कोशिश में लगी कांग्रेस की मुश्किलें भी कम नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ कैम्प की आपसी गुटबाजी से पार्टी परेशान है। शिवराज सिंह चौहान पर व्यापम घोटाले के आरोप लगे लेकिन पार्टी इन आरोपों पर ढंग से चौहान और भाजपा को घेर भी नहीं पा रही है। रही सही कसर बहुजन समाज पार्टी ने अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर के पूरी कर दी। कांग्रेस ने बसपा से गठबंधन करने की बहुत कोशिश की लेकिन आपसी गुटबाजी ने सब खेल बिगाड़ दिया। बसपा का राज्य में अपना एक वोट बैंक है जिसके दम पर उसने पिछले विधानसभा चुनाव में 4 सीटें जीती थी।

    कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी है शिवराज सिंह चौहान जैसे स्थापित और व्यापक जनाधार वाले चेहरे के खिलाफ किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार प्रोजेक्ट ना करना। भाजपा बिना चेहरे भी विधानसभा चुनाव जीत जाती है क्योंकि उसके पास सबसे बड़ा चेहरा नरेंद्र मोदी का है जबकि कांग्रेस के लिए यही बात राहुल गाँधी के बारे में नहीं कही जा सकती।

    कांग्रेस के उग्र हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल निकली है। राहुल गाँधी मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं। जबकि हिंदूवादी छवि वाले नरेंद्र मोदी बोहरा मुसलमानों के मस्जिद में माथा टेक रहे हैं। ऐसा लग तरह है जैसे दोनों पार्टियां एक दुसरे की पिचों पर बैटिंग कर रही हो।

    कॉंग्रेस के लिए 15 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर जमे शिवराज सिंह चौहान को हटाना आसान नहीं होगा। विभिन्न ओपिनियन पोल भी इस और इशारा कर रहे हैं कि इस बार मुकाबला काफी नजदीकी है। वैसे अभी नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार के लिए उतरना बाकी है। मोदी कैम्पेन में उतरना भाजपा और कांग्रेस के नजदीकी मुकाबले को दूर सकता है।

    2019 लोकसभा चुनाव से पहले उसके गढ़ में भाजपा को हराना कांग्रेस के लिए जहाँ संजीवनी का काम करेगा वही 2019 के लिए जनता के मूड की एक झलक भी दिखायेगा।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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