देश की दो बड़ी ताकतवर संस्थाएं अब एक दूसरे के सामने आती हुईं दिख रहीं है। हाल के दिनों में आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच गर्मागर्मी का माहौल चर्चा का विषय बनता हुआ नज़र आया है। इस बीच केंद्र और आरबीआई के बीच संवाद में भी कमी देखने को मिली है।
ऐसे में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर का चयन भी काफी दिलचस्प रहा है। माना जा रहा है कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर की कुर्सी पर विरल आचार्य को बिठाने के पीछे उर्जित पटेल का बड़ा रोल है। माना जा रहा है कि अभी तक आरबीआई में चली आ रही केंद्र की पकड़ पर भी अब बट्टा लगता हुआ दिखाई दे रहा है।
चर्चा का विषय है कि अगले वर्ष सितंबर माह में उर्जित पटेल का 3 साल का कार्यकाल उसी समय समाप्त हो जाएगा। आमतौर पर आरबीआई गवर्नर को केंद्र सरकार कार्यकाल खत्म होने पर कुछ महीनों या सालों का सेवा विस्तार दे देती है।
हालाँकि अंदर के लोगों के अनुसार उर्जित पटेल का वर्तमान में चल रहा कार्यकाल भी काफी अनिश्चित है। ऐसे में यदि आरबीआई केंद्र के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारने की पहल नहीं करती है, तो उर्जित को इस तल्खी की कीमत अपनी कुर्सी छोड़ कर चुकनी पड़ सकती है।
वर्ष 2018 में ही केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच करीब 1 दर्जन मुद्दों पर आपसी असहमति नज़र आई है। जिसमें आरबीआई द्वारा अपनी ब्याज दरों को कम न करना सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। हाल ही में देश की अर्थव्यवस्था अपने बुरे दिनों से गुज़र रही है, ऐसे में केंद्र चाहता था कि आरबीआई अपनी ब्याज दरों को घटा ले, लेकिन आरबीआई ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था।
इसी के साथ नीरव मोदी कांड पर भी केंद्र ने आरबीआई पर पैनी नज़रें न रखने के लिए अपनी नाराजगी जाहिर की थी। तब सरकार ने भी बयान देते हुए कहा था कि आरबीआई सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों पर अधिक से अधिक स्वामित्व चाहती है।
वहीं सरकार ने एनबीएफ़सी मुद्दे पर आरबीआई से कड़े फैसले लेने के लिए कहा था।