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    नोटिस भेजना जारी

    आयकर दाताओं को अब थोड़ा अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है। अब आयकर दाताओं द्वारा समय पर आयकर रिटर्न दाखिल न करने या आयकर विभाग द्वारा भेजी गयी नोटिस का जवाब न देने पर करदाता को अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।

    इसके लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने आयकर अधिनियम 1961 के सेक्शन 276सीसी के तहत आयकर दाता द्वारा समय रहते आयकर रिटर्न दाखिल न कर पाने की स्थिति में व विभाग द्वारा भेजी गयी नोटिस का जवाब ने देने की स्थिति में अभियोजन पक्ष द्वारा आयकर दाता पर कार्यवाही करने की मंजूरी दे दी है।

    हालाँकि कर विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद उन कर दाताओं को बड़ी मुश्किल उठानी पड़ सकती है, जो आमतौर पर अपना कर समय से ही जमा करते हैं, लेकिन महज एक बार उनसे किसी कारण कर जमा करने में देरी हो जाती है। ऐसे करदाताओं द्वारा समय से रिटर्न न जमा कर पाने के चाहे जो भी कारण हों, लेकिन उन्हे जटिल कानूनी प्रक्रिया में फंसना ही पड़ेगा।

    इस एक्ट के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लगातार तीन साल तक अपना आयकर रिटर्न दाखिल करने में असमर्थ रहने और विभाग द्वारा भेजी गयी नोटिस का भी जवाब न देने की दिशा में उसके खिलाफ वांछित एक्ट के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज़ किया जाएगा।

    हाइकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा है कि समय रहते आयकर रिटर्न दाखिल न करना एक दंडनीय अपराध है।

    इसी के साथ करदाताओं ने हाइ कोर्ट से सवाल किया है कि यदि किसी करदाता पर किसी भी तरह का देय कर है ही नहीं है, तब ऐसे में अगर वो आयकर रिटर्न नहीं दाखिल करता है तो उसके ऊपर किस बिनाह पर मुकदमा दर्ज़ किया जाएगा।

    कर विशेषज्ञों का मानना है कि देश में कर को लेकर काफी भ्रम फैला है, ऐसे में आयकर सूची के तहत दाखिल लोग वो भले ही आयकर न भरते हों, उन्हे भी अब रिटर्न समय पर ही दाखिल करना होगा। ग्रामीण आँचल में इस तरह के लोगों की संख्या अत्यधिक है, जो आयकर सूची तो में हैं, लेकिन उनपर किसी भी तरह का आयकर नहीं बनता है। वे लोग रिटर्न भी नहीं भरते हैं।

    माना जा रहा है कि न्यायालय के इस आदेश से कर दाताओं को भविष्य में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

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