चीन की विस्तारवादी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का मकसद ही समस्त विश्व में अपने पाँव पसारना है। इस परियोजना के माध्यम से चीन अफ्रीका और यूरोप तक पहुँच जायेगा। बीआरआई के अंतगर्त ही पाकिस्तान और चीन के मध्य द्विपक्षीय परियोजना चीन-पाक आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी अमल में लायी गयी थी।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक सीपीईसी परियोजना को विदेशी मीडिया हवा बना रहा है। इसके मुताबिक इस परियोजना से पाकिस्तान पर कोई कर्ज का बोझ नहीं बढ़ रहा बल्कि यह परियोजना विदेशी निवेशकों को लुभाएगी।
संघाई अकादमी के उपाध्यक्ष हुआंग रएंवेई ने सीपीईसी परियोजना का मुआयना किया और इस परियोजना के पक्ष में कुछ तथ्य पेश किये। पहला ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण विशेष आर्थिक जोन है। इस बंदरगाह के विकास के तहत यहां नौ उद्योगिक हब का निर्माण किया जायेगा। यह औद्योगिक हब न सिर्फ चीनी कंपनियों को बल्कि विदेशी निवेशकों को भी आकर्षित करेगे।
दूसरा, पाकिस्तान और चीन के मध्य बना काराकोरम हाईवे या अंतर्राष्ट्रीय मार्ग, जिसका कार्य साल 1960 में शुरू हुआ था। सीपीईसी के तहत इस हाईवे का दोबारा निर्माण और विस्तार किया जा रहा है।
तीसरा, चीनी कंपनियों ने पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने के लिए 19 बिलियन डॉलर का निवेश किया है जिसमे पाकिस्तान के 20 प्रमुख परियोजनायें हैं। मसलन चीन की गोर्गेस कॉर्प और गेज़हीुबा ग्रुप पाकिस्तान में बिजली की आपूर्ति के लिए पावर स्टेशन का निर्माण करा रहा है वहीँ हुआवेई टेक्नोलॉजी पाकिस्तान के कम्युनिकेशन नेटवर्क को मजबूत बनाने में जुटी है।
विदेशी मीडिया में चीन के कर्ज का जाल की खबर क्या वाकई एक हवा है? लेख के मुताबिक पाकितान को दी गयी 19 बिलियन डॉलर की राशि में से 18 बिलियन डॉलर निवेश है। पाकिस्तान चीनी कर्ज से चिंतित नहीं है लेकिन इमरान खान की सरकार ने चुनावी प्रचार के वक्त चीनी कर्ज को पाकिस्तान की आर्थिक सेहत के लिए मुनासिब नहीं समझा था और हाल ही में सीपीईसी के रेलवे प्रोजेक्ट में 2 बिलियन डॉलर की कटौती की है और आगामी वक्त में अधिक कटौती करने की बात कही है।
इमरान खान की सरकार के मंत्री ने कबूल किया था कि सीपीईसी से सिर्फ चीन को फायदा है और बलूचिस्तान के नागरिक इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं जिनकी आवाज़ को दबाने की भरसक कोशिश की जा रही है।
आईएमएफ, विश्व बैंक, अमेरिकन समेत कई संस्थानों ने रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि चीन का निवेश विकासशील देशों पर भारी पड़ सकता है। अफ्रीका में साल 2025 तक चीनी निवेश 440 बिलियन डॉलर हो जायेगा।
हाल ही में चीन ने श्रीलंका का हबनटोटा बंदरगाह और मलेशिया का द्वीप कर्ज का भुगतान न करने पर अपने अधिकार में ले लिया। ख़बरों के मुताबिक चीन ग्वादर बंदरगाह पर भी अपने नागरिकों को बसा रहा है।