लगातार गिरता रुपया किसी भी तरह से भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। हर दिन अपनी न्यूनतम कीमत का एक नया रिकॉर्ड बनाता जा रहा है।
रुपये में इस तरह की गिरावट पिछले 16 सालों में पहली बार देखी गयी है। इस बार रुपये की बढ़ती कीमत का कारण तेल के बढ़ते दाम नहीं, बल्कि आरबीआई द्वारा दरों को स्थिर रखना माना जा रहा है।
रुपया पिछले छः महीनों से लगातार गिर रहा है, रुपये को लेकर इस तरह की घटना आख़िरी बार 2002 में देखने को मिली थी।
रविवार को आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय मुद्रा का प्रदर्शन संतोषजनक है। इसी के साथ उन्होने कहा कि केंद्रीय बैंक अभी किसी भी तरह से बाज़ार में दाखल देने के मूड में नहीं है।
वहीं इसी के साथ विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई गवर्नर ने यह कहते हुए कि रुपये के स्तर को बरकरार रखना उनका काम नहीं है, वाकई भारतीय मुद्रा को बीच मझधार में छोड़ दिया है। इस तरह से अब भारतीय मुद्रा के कमजोर होने के आसार और भी बढ़ जाएँगे।
रुपये ने हाल ही में 74 के पार जाकर अपना नया न्यूनतम रिकॉर्ड बनाया था। इसके ठीक पहले ही आरबीआई ने अपनी रेपो दर को स्थिर रखने का फैसला किया था।
विशेषज्ञों के अनुसार रुपया जल्द ही 75 रुपये प्रति डॉलर का स्तर भी छू सकता है। ऐसे में देश में धीरे-धीरे मंदी के भी आसार बन सकते हैं।