पिछली तिमाही में भारत के बाहरी कर्ज़ में करीब 2.8 प्रतिशत की कमी आई है। इसी के साथ अब भी भारत पर 514.4 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का कर्ज़ है।
कर्ज़ में आई कमी की सबसे बड़ी वजह एनआरआई डिपॉज़िट को बताया जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही आरबीआई ने विदेश में रहने वाले भारतियों से भारत को विदेशी मुद्रा कर्ज़ के रूप में देने के लिए कही थी, जिसे बाद में भारत उन्हे ब्याज़ सहित चुकाएगा।
जून में खत्म हुई तिमाही में भारत के कर्ज़ में करीब 2.8 फीसद की कमी आई है, इसी के साथ ही देश ने करीब 14.9 अरब अमेरिकी डॉलर कीमत का कर्ज़ चुकाया है। भारत की जीडीपी की तुलना में उसके ऊपर कर्ज़ का अनुपात 20.4 प्रतिशत है, जबकि पिछली तिमाही में ये अनुपात 20.5 प्रतिशत था।
आरबीआई ने स्पष्ट करते हुए बताया है कि भारत के ऊपर जो भी कुल कर्ज़ है, उसमें अमेरिकी डॉलर के रूप में लिए गए कर्ज़ का हिस्सा 50.1 प्रतिशत है। इसी के साथ ही भारतीय रुपये के रूप में 35.4 प्रतिशत, एसडीआर (स्पेशल ड्राविंग राइट्स, यह एक खास तरह की रिज़र्व मुद्रा है।) के रूप में 5.4 प्रतिशत, जापानी येन के रूप में 4.7 प्रतिशत तथा यूरो के रूप में 3.3 प्रतिशत का कर्ज़ है। ये सभी आंकड़े जून 2018 के अंत के हैं।
हालाँकि भारत अपने ऊपर चढ़े हुए कर्ज़ को उतारने के लिए सतत प्रयासरत रहता है। देश के ऊपर चढ़े कर्ज़ का ब्याज़ भारतीय जीडीपी को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है।
भारत की हमेशा से ही ये कोशिश रही है कि वो अपने ऊपर चढ़े हुए कर्ज़ को चुका दे, जिससे लेकर वो हमेशा से ही सजग रहा है। वर्तमान एनडीए सरकार विदेशी कर्ज़े के चुकाये जाने को अपनी प्राथमिकता के रूप में देखती है।