अमेरिका और रूस के बीच छिड़े शीत युद्ध के बीच भारत ने वांशिगटन और मास्को से इंडो-पैसिफिक बुनियादी ढाचों के निर्माण और कोनेक्टविटी नेटवर्क बिछाने के लिए समझौता किया है। यह परियोजना चीन की महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड के सामानांतर होगी।
यह परियोजना चीन की विस्तारवादी नीति पर लगाम लगाएगी। अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय वित्त विभाग ने भारत से बातचीत कर इस समझौते पर दस्तखत करवाने की जुगत में है। इस समझौते के मुताबिक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सरकार ऊर्जा, यातायात, पर्यटन और तकनीकी सुविधाओं पर साझा निवेश करेंगी।
मास्को नई दिल्ली से वार्ता करके इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में कजाख्स्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, ओमान और भारत को जोड़ता हुआ एक गलियारे का निर्माण करेगा।
गलियारे के विषय में चर्चा अगले हफ्ते हो रही सालाना भारत-रूस बैठक में होगी। यह वार्ता अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण आवजाहक गलियारे, अश्गाबात समझौते और भारत के लिए ईरानी चाहबार बंदरगाह से जुड़े रहने में फायदेमंद साबित होगा। अगले हफ्ते के इस वार्षिक सम्मलेन में भारत और उज्बेकिस्तान की बैठक के विषय में भी चर्चा होगी।
भारत और उज्बेकिस्तान सम्मलेन हाल ही में ताशकेंत में हुआ था। ताशकेंत सम्मलेन में यातायात, इस इलाके में नए गलियारे, कस्टम नियमों और सीमा प्रकियायों में विकास, महत्वपूर्ण तकनीकी सूचनाओं की जानकारी और डिजिटल सेवाओं के विषय में विचार-विमर्श हुआ था।
भारत यूरेसियन क्षेत्रों में गैर-बीआरआई गलियारों का प्रचार कर रहा है क्योंकि वह एकलौता देश है जिसने शंघाई सहयोग संगठन में बीआरआई का समर्थन नहीं किया था। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अक्टूबर में तज़ाकिस्तान का दौरा करेंगी।
इस दौरे में विदेश मंत्री एससीओ के प्रमुखों से मुलाकात कर कनेक्टिविटी इनिशिएटिव पर भारत के रुख अवगत करवाएंगी। सभी देशों की संप्रभुता उल्लंघन किए बिना इस प्रोजेक्ट को पारदर्शी तरीके से बिना किसी आर्थिक बोझ और सेना की मंशा से लागू किया जाना चाहिए।
अमेरिकी सरकार बीआरआई की काट के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ साझेदारी कर ढांचागत परियोजना के निर्माण परनिवेश करने का विचार कर रही है। चारों देशों के इस साझे प्रोजेक्ट को ओवरसीज प्राइवेट इन्वेस्टमेंट कोऑपरेशन (ओपीइसी) नाम दिया गया है।
सभी साझेदार देश इस परियोजना में ऊर्जा, यातायात, पर्यटन और तकनीक के लिए आर्थिक सहयोग करेंगे। डोनाल्ड ट्रम्प के इस बिल को कानूनी मंज़ूरी मिलते ही ओपीइसी का नाम बदलकर संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास आर्थिक सहयोग (यूएसइडीएफसी) रख दिया जाएगा। इस प्रोजेक्ट में 60 बिलियन डॉलर निवेश होने की सम्भावना है।