विषय-सूचि
डाटा कम्प्रेशन क्या है? (data compression in hindi)
डेटा कम्प्रेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें डेटा बिट्स को कम कर दिया जाता है जिससे कि डेटा का आकार कम हो जाता है तथा इससे स्टोरेज क्षमता तथा फ़ाइल ट्रांसफर की गति बढ़ जाती है।
डेटा कम्प्रेशन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हम समान प्रकार के डेटा को कम बिट्स में सुरक्षित रख सकते हैं और संचारित कर सकते है।
डेटा को कंप्रेस्ड करने के लिए फार्मूला तथा एल्गोरिथ्म का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर मान लीजिये जब हम किसी भी गाने को डाउनलोड करते है तो वही गाना अलग-अलग साइज़ का होता है(10mb,5mb, 2.6mb) जिससे कि हम तेज गति से उसे डाउनलोड कर सकते है।
कम्प्रेशन तकनीक के प्रकार (types of compression technique in hindi)
डेटा कम्प्रेशन दो प्रकार का होता है जो निम्न हैं:-
- Lossless कम्प्रेशन:- वह कम्प्रेशन जिसमें डेटा के आकार को इस तरह घटाया जाता है जिससे कि डेटा की हानि नही होती है Lossless कम्प्रेशन कहलाता है। इसका मतलब ये हुआ कि हम decompressed करके वापस डेटा के मूल साइज़ को वापस पा सकते है।
इस कम्प्रेशन का प्रयोग ऐसे डाक्यूमेंट्स में किया जाता है जो टेक्स्ट को रखे रहते है।
2:-Lossy कम्प्रेशन:- वह कम्प्रेशन जिसमें डेटा की हानि होती है Lossy कम्प्रेशन कहलाता है तथा हम दुबारा decompressed करके उसको वापस नही पा सकते है इसका मत्लाब ये हुआ कि इसमें डेटा हमेशा के लिए delete हो जाता है।
इस कम्प्रेशन का प्रयोग ज्यादातर चित्र, ऑडियो एवं ग्राफ़िक्स में किया जाता है।
कुछ डाटा कम्प्रेशन तकनीक (few data compression techniques in hindi)
कुछ बेसिक डाटा कम्प्रेशन तकनीक का जिक्र नीचे किया गया है जो अक्सर प्रयोग में लाये जाते हैं:
- Null कम्प्रेशन: ये ब्लांक स्पेस कि सीरीज को एक कम्प्रेशन कोड के साथ रिप्लेस कर देता है और उसके बाद एक ऐसी संख्या डालता जो बताते हैं कि उन स्पेस कि संख्या क्या है।
- Run-length कम्प्रेशन: ये चार या उस से ज्यादा नल करैक्टर के सीरीज को कॉम्प्रेस कर देता है। इसमें उन चरक्टेर्स को एक कम्प्रेशन कोड से रिप्लेस किया जाता है और फिर उसके बाद वो मान डाला जाता है जो ये बताते हैं कि कितनी बार वो करैक्टर रिपीट हुआ।
- कीवर्ड इनकोडिंग: ये एक ऐसा टेबल बनता है जिसमे वो मान होते हैं जो च्चाराक्टेर्स के कॉमन सेट को रेप्रेसेंत करते हैं। उदाहरण के तौर पर मान लीजिये कि The और He जैसे कैरेक्टर जो बार-बार आते हैं। इनकी जगह पर ऐसे टोकन डाल दिए जाते हैं जो कैरेक्टर को ट्रांसमिट करने के प्रयोग में आते हैं।
- Adaptive Human Encoding और Lempel Ziv Algorithms: ये अल्गोरिथम बार-बार आने वाले कैरेक्टर्स कि जगह पर एक सिंबल डिक्शनरी का प्रयोग करते हैं। जैसे जैसे नये पैटर्न आते हैं ये डिक्शनरी अपडेट होती चली जाती है। डाटा के संचार के लिए रिसीविंग सिस्टम को ये डिक्शनरी दे दी जाती है जिस से उन्हें ये पता चल जाता है कि इन कैरेक्टर्स को डिकोड कैसे करना है। फाइल स्टोरेज के समय इस डिक्शनरी को कम्प्रेशन फाइल के साथ ही सुरक्षित रखा जाता है।
तो अब आप समझ गये होंगे कि डाटा कम्प्रेशन का प्रयोग डाटा के आकर को घटाने के लिए कैसे किया जाता है।
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