आने वाला चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रही कांग्रेस पार्टी का हाल का प्रदर्शन बहुत ही शर्मनाक रहा है एवं उसका प्रमुख वोट बैंक भी उससे छीन गया।
पिछले कुछ समय से पार्टी में रह-रह कर नेतृत्त्व को लेकर सुर उठते रहे है। इसलिए पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंप दी। इसी का उदाहरण हैं अविश्वास प्रस्ताव।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस ने सदन के सामने राहुल गांधी को मजबूत विपक्षी कद्दावर नेता के रूप में पेश किया था। परंतु कांग्रेस कार्यकारिणी बैठक के बाद राहुल गांधी के नाम पर मोहर लगने से अन्य विपक्षी दलों ने एतराज़ जताया है।
जनता दल सेक्युलर के अलावा किसी भी साथी एवं अन्य विपक्षी दल ने कांग्रेस का समर्थन नहीं किया है। बिहार में महागठबंधन के साथी दल के दिग्गज नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि, ‘सभी विपक्षी दल प्रधानमंत्री उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए साथ बैठकर चर्चा करेंगे। इस दौड़ में अकेले राहुल गांधी ही नहीं हैं। कई विपक्षी नेता जैसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और बसपा प्रमुख मायावती इसमें शामिल हैं।’
साथी दलों का साथ ना मिलने पर कांग्रेस आला कमान ने साफ़ कर दिया की पार्टी गैर-कांग्रेस या क्षेत्रीय पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार कर सकती है।
इससे कांग्रेस ने आने वाले लोक सभा चुनावों को लेकर अपनी मंशा साफ़ कर दी है कि वह किसी भी हालात में भारतीय जनता पार्टी को सरकार नहीं बनाने देगी एवं भाजपा का चुनावी रथ रोकने का भरसक प्रयास करेगी।
अन्य विपक्षी दलों के मिज़ाज को देखते हुए कांग्रेस ने बसपा प्रमुख मायावती और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के नाम पर अपनी सहमति जता दी है।