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    सुप्रीम कोर्ट

    बीते कुछ वक्त से देश में अराजकता कुछ ज़्यादा देखने को मिल रही हैं। आए दिन कोई ना कोई खबर इससे जुड़ी होती हैं। बीते कुछ समय से देश में असहिष्णुता एवं अराजकता आग कि तरह फैली हैं। पहले जहाँ नक्सलवाद ही हमारी प्राथमिक दिक्कत थी पर अब अराजकता आए दिन परेशानी का सबब बनती जा रही हैं।

    सरकार हर बार इससे पार पाने का दम भर्ती हैं परन्तु हर बार विफल रहती हैं। जम्मू कश्मीर में पत्थर बाज़ हो या देश में गौ रक्षा के नाम पर माओवाद फ़ैलाने वाले संगठन। समय के साथ इनकी गतिविधियों में तेज़ी आई हैं एवं असहिष्णुता में भी वृद्धि आई हैं।

    अफ़वाहों के चलते बीते डेढ़ सालों में देश में तकरीबन 32 मौतें हुई हैं। सिर्फ साल 2018 की बात करें तो वाट्सऐप के जरिए अफ़वाह फैलने के बाद हुई ये 21वीं हत्या हैं। इसमें लिंचिंग एवं अन्य मामले जोड़ दे तो यह आंकड़ा 100 पार पहुँच गया हैं।

    पर देश कि सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने देश में गो रक्षा के नाम पर हो रही भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने दिशानिर्देश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कोई भी नागरिक कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाज़त नहीं दी जा सकती। अपने फैसले में कोर्ट ने राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार को 4 हफ्तों के भीतर इससे जुड़े कड़े नियम बनाने का प्रावधान दिया है।

    आज कल गौ रक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर कोर्ट ने अपनी सुनवाई में कहा कि ‘मॉबोक्रेसी’ को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इसे एक नया नियम नहीं बनने दिया जा सकता हैं’ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मॉब लिंचिंग जैसे मामले को अलग अपराध में रखने का प्रावधान दिया हैं।

    सरकार और विपक्ष में हिंसा एवं गौ रक्षा को लेकर केवल आरोप प्रत्यारोप कि राजनीति होती हैं अगर समय रहते इसको लेकर एक उपयुक्त कानून पारित किया जाता तो आज शायद स्थिति में थोड़ा फर्क होता।

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