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    शिलॉन्ग

    मेघालय की राजधानी शिलांग में 1 जून को लागू किए गए कर्फ्यू से आज वहां के लोगों को कुछ राहत मिली।

    पुलिस के साथ सेना ने हिंसा प्रभावित इलाकों में फ्लैग मार्च किया, हालांकि अभी भी प्रशासन हालात पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं।

    अर्धसैनिक बलों की 15 कंपनियां अभी भी शिलांग में तैनात हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनरैड संगमा ने कहा था कि सरकार एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी उप मुख्यमंत्री के नेतृत्व में बनाएगी जो कि समस्या का पूर्ण समाधान करने की कोशिश करेगी।

    क्या है समस्या?

    शिलांग में करीब 1857 से पंजाबी दलित रह रहे हैं। अंग्रेज तब उन्हें वहां सफाई कर्मचारियों के तौर पर ले गए थे। यह वह समय था जब अंग्रेज भारत को हथियाने के बाद अपने कदम पसार रहे थे। और शिलॉन्ग में अंग्रेजों ने अपनी बस्ती बसाई थी। पर वहां उनके घरों व नालों में सफाई  स्थानीय जनजातियों के लोग नहीं करते थे। इसलिए वो लोग पंजाब से दलितों को वहां ले गए। पंजाबी दलितों की यह बस्ती शिलांग में अब पंजाबी लेन के नाम से जानी जाती है। लंबे समय तक पंजाबी समुदाय के लोग स्थानीय खासी जनजाति के लोगों के साथ मेल-भाव से रहते रहे।

    खासी जनजाति के प्रमुख ने ही पंजाबी समुदाय के लोगों के रहने के लिए जगह दी थी। पर 1980 के बाद जब मेघालय सरकार ने मैनुअल स्कैनिंग पर रोक लगाना शुरु किया तब इस समुदाय के ज्यादातर लोग बबेरोजगार हो गए व अन्य काम करने लगे जिससे स्थानीय लोगों के साथ इनका सम्पर्क बढा।

    इस बीच शिलांग जिला प्रशासन ने पंजाबी लेंको अवैध झुग्गी झोपड़ी घोषित कर दिया और इसे हटाने का आर्डर जारी कर दिया। इसके खिलाफ यहां के निवासी मेघालय हाई कोर्ट गए जिसने इस फैसले पर स्टे लगा दिया।

    पंजाबी समुदाय के लोगों के खिलाफ वहां के स्थानीय जनजातियों में काफी विरोध है। स्थानीय लोग पंजाबी कॉलोनी को अपराधियों अवैध गतिविधियों का अड्डा बताते हैं।

    उन्हें वहां से हटाए जाने के विरोध में पंजाब दलित समुदाय के लोग दलित कमीशन के पास नहीं पहुंचे पर मामला जस का तस है।

    पंजाबी समुदाय के लोगों का कहना है की सरकार उन्हें वहां से हटाकर उस जगह पर बाजार विकसित करना चाहती है।

    हिंसा की वजह

     

    मौजूदा हिंसा की पुख्ता वजह ज्ञात नहीं है। कुछ संस्करणों के हिसाब से पंजाबी समुदाय की महिला से छेड़खानी करने के कारण वहां के मर्दों ने खासी समुदाय के एक युवक की पिटाई कर दी, इसलिए हिंसा भड़की।

    हालांकि पुलिस व प्रेस द्वारा समर्थित प्रारूप यह है कि एक पंजाबी महिला का खासी समुदाय के ड्राइवर के साथ विवाद होने के बाद, वहां के युवकों ने खासी ड्राइवर की पिटाई की।

    पर इसके बाद दोनों समूहों के बीच समझौता हो गया था। खांसी युवक को उसके चोटों के एवज में ₹4000 इलाज के लिए पंजाबी समुदाय ने दिया था हालांकि इसके बाद व्हाट्सएप पर एक अफवाह फैली कि  खासी समुदाय के 2 युवाओं का सर काट के पंजाबी कॉलोनी के बाहर फेंक दिया गया है। इसके कारण कॉलोनी के चारों तरफ भीड़ जमा हो गयी जिसके बाद हिंसा भड़क उठी। तब से शिलांग में लगातार तनाव का माहौल है। बीएसएफ, आईटीबीपी, व एसएसबी की कुल मिलाकर 15 बटालियन वहां तैनात हैं साथ ही सेना को भी स्टैंडबाई पर रखा गया ह।

    शांति की कोशिश

    पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राज्य सरकार की एक कमेटी को वहां हालात का जायजा लेने के लिए भेजा है।

    राजनाथ सिंह ने भी मामले पर चिंता जताते हुए हालात की समीक्षा ली।  मेघालय सरकार ने समस्या को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाई है जो पंजाबी समुदाय के लोगों को उस इलाके से हटाकर अन्यत्र बसाने का रास्ता तलाशेगी।

    पर्यटकों को दिक्कत

    शिलांग एक पर्यटन स्थल है जहां बड़ी संख्या में पूरे भारत व विश्व के सैलानी घूमने आते हैं। ऐसे में कर्फ्यू लगने की वजह से वहां कई सैलानी फंस गए थे। दुर्भाग्य की बात यह थी कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों जैसे पंजाबी कॉलोनी आदि में ही अधिकतर होटल स्थित हैं।

    ऐसे में बहुत सारे पर्यटक कर्फ्यू के कारण शिलांग में ही फंस गए थे। पुलिस की पहली प्राथमिकता उन्हें उन इलाकों से निकाल कर सुरक्षित मेघालय से बाहर भेजना था।

    लम्बे समय तक कर्फ्यू लगा कर रखने के कारण धीरे धीरे पुलिस इस मकसद में कामयाब रही। व किसी बाहरी पर्यटक को कोई नुकसान नहीं झेलना पड़ा।

    प्रशासन ने सावधानी से इस मामले को संभाला व कोई गलती नहीं की। अब जबकि हालात कुछ स्थिर हुए हैं व पुकिस कर्फ्यू में ढील देने पर विचार कर रही है, तब इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि अफवाहों व गलत मेसेजों के जरिये कितना नुकसान पहुंचता है समाज को।

    साथ ही लम्बे समय से लटके हुए पंजाबी कॉलोनी के मसले को भी सरकार द्वारा त्वरित सुलझाया जाना चाहिए।

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