Fri. Nov 22nd, 2024
    बंगाल पंचायत चुनाव

    कल कर्नाटक चुनाव के परिणाम आने वाले हैं। पर देश एकटक से भौचक्का होकर पश्चिम बंगाल की ओर देख रहा है।

    आज बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान भीषण हिंसक वारदाते सामने आयीं। विरोधी पक्षों के बीच हिंसक वारदातों में करीब 12 लोगों की जाने गई व कई अन्य लोग घायल हुए।

    उत्तर 24 परगना, कूचबेहार, दक्षिण 24 परगना, और पश्चिम मिदनापुर जिलों में से सबसे ज्यादा हिंसा की खबरें आयीं।

    • कई जगहों से जबरदस्ती बूथ लूटे जाने की भी खबरें आयीं। कूचबेहार के सुक्ताबारी में हुए बम धमाकों में 20 लोग घायल हो गए जिनमें एक तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार व एक महिला भी शामिल है। कूचबिहार के ही दिन हटा में कुछ मतदाता दो पक्षों के बीच की झड़प में घायल हो गए।
    • बर्दवान में विपक्ष ने तृणमूल कार्यकर्ताओं पर बूथों के बाहर बम फेंकने का आरोप लगाया।
    • दक्षिण 24 परगना में सीपीएम के कार्यकर्ता व उसकी पत्नी को घर के अंदर बंद करके जिंदा जला दिया गया।
    • दक्षिण परगना में ही मीडिया की गाड़ी को क्षतिग्रस्त किया गया। मृतकों में तृणमूल, लेफ्ट व भाजपा के समर्थक शामिल हैं।

    रक्त तृण

    पूरे बंगाल में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर हिंसा फैलाने मतदाता व विरोधी उम्मीदवारों को डराने धमकाने का आरोप लगा है। 13 मई को पुलिस ने तृणमूल के बड़े नेता व पूर्व विधायक अराबुल इस्लाम के घर से सैकड़ों देसी बम बरामद किये। इस्लाम को हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद उसके घर की तलाशी के दौरान यह बम मिले।

    खतरे में लोकतंत्र

    पश्चिम बंगाल में करीब 58,000 पंचायती क्षेत्र है। जिनमें से 38000 पर आज चुनाव करवाए गए। करीब 34% सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी निर्विरोध जीत गए अर्थात उनके खिलाफ दूसरी पार्टियों के उम्मीदवारों ने चुनाव ही नहीं लड़ा। यह बात अपने आप में बेहद खतरनाक प्रतीत होती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर आपत्ति जताई व विजेता की घोषणा को रोकने के आदेश किए।

    भाजपा व लेफ्ट नेताओं ने इन घटनाओं के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस ममता सरकार पर कड़ा हमला बोला। सीपीएम नेता प्रकाश करात के मुताबिक यह प्रशासनिक लापरवाही का मामला नहीं है। बल्कि संवैधानिक विफलता है। भाजपा के अनुसार ममता बनर्जी बंगाल में खून का खेल खेल रही है।

    वही तृणमूल नेता डेरेक ‘ओ ब्रायन ने कहा, “ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा के 1990 के पंचायती चुनाव में 400 जाने गई थी। 2003 में लेफ्ट के शासन में 40 जानें गई, अब यह समस्या काफी हद तक सामान्य होने के करीब आई है।”

    अहम सवाल

    सवाल यह है कि क्या हत्या व बम बारी जैसी हिंसक घटनाओं को तुलनात्मक ढंग से सामान्य बताना वह भी एक सत्ताधारी के एक कद्दावर नेता व राज्यसभा के द्वारा क्या शोभा देता है? क्या ममता सरकार को इन घटनाओं की जिम्मेदारी लेकर दोषियों को सजा देने की बात नहीं करनी चाहिए थी, खुद को क्लीन चिट देने की जगह।

    2019 की तैयारी

    सुप्रीम कोर्ट व कोलकाता उच्च न्यायालय ने राज्य में हो रहे पंचायती चुनाव पर असंतोष प्रकट किया था। कड़ी सुरक्षा के बावजूद बूथ लूटने व मतदाताओं को डराने जैसी खबरें सामने आई  हैं। 34% सीटों पर तृणमूल का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई तो क्या 2019 में राज्य में निष्पक्ष चुनाव होंगे?

    जिन्होंने उम्मीदवारों को डरा दिया क्या वह मतदाताओं को डराकर बूथ तक पहुंचने से नहीं रोक लेंगे? चुनौती ना सिर्फ चुनाव आयोग की है बल्कि हमारे लोकतंत्र व संविधान की भी है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *