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    स्मृति ईरानी और नरेन्द्र मोदी

    सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फैसले को प्रधान-मंत्री कार्यालय ने वापस ले लिया।

    स्मृति ईरानी के अधीन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज़ यानि जाली खबरों पर लगाम लगाने के लिए मीडिया हाऊसों को निर्देश दिए थे।

    क्या थे ये निर्देश?

    • सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय के निर्देशशानुसार अगर कोई पत्रकार झूठी खबरें फैलाता पकड़ा जाता है तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जायेगी।
    • पहली बार ऐसा करते पकड़े जाने पर 6 महीने के लिए, दूसरी बार 1 साल व तीसरी बार ऐसा करने पर हमेशा के लिए भी मान्यता रद्द कर दी जा सकती है।
    • फेक न्यूज़ की शिकायत के बाद प्रेस कॉउंसिल ऑफ इंडिया व नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन संबंधित अधिकार क्षेत्रों में पन्द्रह दिनों के भीतर जांच करेगा।
    • जांच के दौरान आरोपी पत्रकार की सदस्यता निलम्बित रहेगी।

    इन फैसलों को लेकर विपक्ष व पत्रकारों का बड़ा समूह सरकार की आलोचना कर रहा था।

    मोदी सरकार भी इस समय एससी/एसटी एक्ट को लेकर इस तरह फंसे हुए हैं कि वो एक और विवाद मुफ़्त में नहीं लेना चाहते हैं।

    पत्रकारों की मान्यता

    पत्रकारो को अधिमान्यता प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पी.आई.बी) देता है। कम से कम पांच वर्षों का अनुभव रखने वाले पत्रकार व फोटोग्राफर तथा 15 सालों का अनुभव रखने वाले फ्रीलांस पत्रकार यह अधिमान्यता प्राप्त कर सकते हैं।

    इसके लिए उन्हें पी. आई. बी में आवेदन कर सभी मानकों पर खरा उतरना पड़ता है।

    पत्रकारों के लिए यह अधिमान्यता काफी महत्वपूर्ण है। पीआईबी से अधिमान्य पत्रकारों को दो मुख्य फायदे हैं।

    पहला कि उन्हें प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति अथवा केंद्रीय मंत्रियो से सम्बंधित कार्यक्रमों में जाने की अनुमति स्वतः मिल जाती है। ऐसे कार्यक्रमोें को सिर्फ अधिमान्य पत्रकार ही कवर कर सकते हैं।

    दूसरा अधिकार उन्हें अपने गोपनीय स्त्रोतों की सुरक्षा का अधिकार देता है।

    चूंकि अधिमान्यता देने से पहले गृह मंत्रालय पूरी जांच करता है इसलिए उन्हें किसी मंत्री से मिलने के लिए अथवा मंत्रालयों में किसी पूर्व-अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।

    उन्हें रजिस्टरों में अपने आने जाने का विवरण नहीं देना पड़ता। इस तरह कोई जांच नहीं कर सकता कि वो कब किस अफसर से मिली या किस कार्यालय में गयी। इस तरह उनके स्त्रोत सुरक्षित रहते हैं।

    पत्रकारो के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है अपने स्त्रोत बनाना व उनकी गोपनीयता को बरकरार रखना।

    एक और फायदा इन पत्रकारो को स्वास्थ्य सुविधा के तौर पर मिलता है जो कि सिर्फ केंद्र सरकार के अधिकारियों को प्राप्त होती है।

    प्रधानमंत्री मोदी का रुख

    इस आदेश के बाद विपक्ष ने सवाल उठाये कि यह तय कौन करेगा कि कौन सी खबर सच है और कौन सी झूठ? पत्रकारों ने इसे प्रेस की स्वतन्त्रता पर हमला बताया।

    पर प्रधानमन्त्री कार्यालय ने इस फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि अधिमान्यता पर पी. आई. सी ही फैसला करेगी।

    प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो ने भी अपने बयान में कहा कि झूठी खबरों को फैलने से रोकना जरूरी है पर उसके लिए पत्रकारों की स्वतन्त्र संस्थाओं को ही फैसला करना चाहिए।

    असर

    अगर यह फैसला लागू हो जाता तो फेक न्यूज़ पर लगाम लगे ना लगे, पत्रकारों को नकेल जरूर चढ़ जाती।

    पत्रकारों को झूठे मामलों में फ़साना आसान हो जाता।

    अधिमान्यता बरकरार रखने के लिए पत्रकार सरकार के गुण गाते। ऐसे में नुकसान देश का ही होता।

    झूठी खबरें तो वो पत्रकार भी फैला सकते हैं जिन्हें पीआईसी की अधिमान्यता प्राप्त नहीं है। उनसे आप कैसे अधिमान्यता छीनेंगे? उनके लिए क्या सजा का प्रावधान है?

    झूठी खबरें वर्तमान में देश के लिए खतरनाक हो सकती हैं, पर डरपोक और सहमे हुए पत्रकार देश के लिए ज्यादा खतरे पैदा कर सकते हैं।

    अतः हम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इस फैसले की निंदा करते हैं पर प्रधानमन्त्री के फैसले का स्वागत करते हैं।

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