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    भारत जापान सम्बन्ध

    भारत और जापान के रिश्ते पारंपरिक रूप से मज़बूत रहे हैं। दोनों देशों के लोगों ने आपस में आम सांस्कृतिक परंपरा साझा की है जिसमे बुद्धिज़्म की विरासत, जनतांत्रिक मूल्यों और खुले समाज का विचार शामिल है।

    भारत-जापान एशिया के सबसे पुराने जनतंत्रों में से एक हैं और आपसी साझेदारी में विश्वास रखते रहे हैं। दोनों के राजनैतिक, आर्थिक एवं सामरिक हित अनुरूप हैं।

    जापान की आधिकारिक सहायता राशि(ओडीए) को प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा देश आज भारत है। दोनों देशों के बीच इस दोस्ती को “भारतीय-जापानी भाईचारे” से भी संदर्भित किया जाता है।

    हाल के समय में दोनों देशों के रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे शुरू से ही भारत की ओर झुके दिखाई दिए हैं। नरेन्द्र मोदी के कार्यालय में तो दोनों देशों के सम्बन्ध काफी मजबूत हुए हैं।

    दोनों देशों के मजबूत संबंधों का एक कारण चीन भी है। दक्षिणी चीन सागर में चीन और जापान के बीच लगातार तनाव रहता है। ऐसे में जापान भारत के साथ मिलकर चीन को टक्कर देना चाहता है।

    चीन की वन बेल्ट वन रोड के मुकाबले भारत और जापान नें मिलकर एशिया-अफ्रीका विकास मार्ग शुरू करनें की कोशिश की है। इस योजना के जरिये भारत और जापान अफ्रीका में बड़ी मात्रा में पैसे निवेश करेंगे।

    इस लेख के जरिये हम भारत और जापान के रिश्तों पर गहराई से चर्चा करेंगे।

    सांस्कृतिक संबंध:

    दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक विनिमय 6वीं शताब्दी के शुरुआत में प्रारंभ हुआ जब भारतीय भिक्षु बौद्ध धर्म की विचारधारा फ़ैलाने जापान पहुंचे।

    बौद्ध धर्म और आंतरिक रूप से जुड़ी भारतीय संस्कृति का जापानी संस्कृति पर काफी प्रभाव पड़ा और दोनों देशों के बीच परिणामस्वरूप एक प्राकृतिक संवेदना का निर्माण हुआ जिसे आज भी महसूस किया जा सकता है।

    बुद्धिज़्म की कड़ी ने दोनों देशों के भिक्षुओं और विद्वानों को आपस में जोड़ा जिससे वे नियमित तौर पर एक दूसरे के देशों की यात्रा करने लगे।

    नालंदा विश्वविद्यालय के अब खँडहर हो चुके पुस्तकालय से मिले प्राचीन रिकॉर्ड उन लोगों का वर्णन करते हैं जिन्होंने जापान से यहाँ आकर शिक्षा ली। इनमें से सबसे ख्यात लोगों में से एक थे तेंजिकू तोकुबी (1612-1692) जिनका नाम ‘तेंजिकू’ जोकि भारत के लिए जापानी नाम है, उस पर पड़ा।

    भारतीय आज़ादी आंदोलन और दूसरा विश्वयुद्ध:

    कई भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कार्यकर्ता ब्रिटिश शासन से भाग कर जापान में शरण ली। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता, रास बिहारी बोस ने भारत-जापान संबंधों का निर्माण किया।

    जापान के भविष्य के प्रधान मंत्री त्सुयोशी इनुकाई, अखिल-एशियाई मित्सुरो तोयामा और अन्य जापानी लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अपना समर्थन जताया।भारत से एक छात्र ए.एम. नायर, स्वंतंत्रता कार्यकर्ता बन गये और युद्ध के दौरान नायर ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एवं जस्टिस राधा बिनोद पाल को युद्ध के बाद समर्थन दिया।

    भारत के लोगों ने 20वीं शताब्दी के शुरुआत में जापानी पुनरुत्थान को सकारात्मक तौर से देखा जोकि जापानी ताकत को एशिया के दोबारा मज़बूती के साथ खड़े होने के रूप में देख रहे थे। पहले विश्वयुद्ध के बाद जापान में हुए त्वरित विकास और आर्थिक ताकत ने भारत में जापान की तरफ़ आदर पैदा किया।

    दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय फ़ौज को अंगेजों के अधीन होने के कारण ब्रितानी सेना की तरफ़ से लड़ना ही था। 20 लाख से ज़्यादा भारतीय सैनिक युद्ध में शामिल रहे और जापानी सेना के खिलाफ बर्मा में और भारतीय सीमा पर लड़ाई की। 1944-45 के दौरान भारतीय-ब्रितानी सेना ने जापान को कई श्रिंखला में हुए युद्धों में परास्त किया।

    राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता सुभाष चन्द्र बोस ने जापानी संसाधनों की मदद से आज़ाद हिन्द फ़ौज बनायी जिसका उद्देश्य अंग्रेजों के राज को बल और शक्ति के उपयोग से ख़त्म करना था।

    1947 के बाद:

    भारत  ने 1949 में पराजित हो चुके जापानी साम्राज्य को सद्भावना के संकेत में दो हाथी भेजे।

    जापान की संप्रभुता दोबारा कायम होने के बाद भारत-जापान ने शांति संधि पर हस्ताक्षर किये और फिर 28 अप्रैल 1952 में अधिकारिक कूटनीतिक संबंध कायम हुए। आर्थिक, व्यापरिक, तकनीकि एवं कूटनीतिक संबंधों का मज़बूती के साथ निर्माण शुरू हुआ।

    भारत ने युद्ध से बुरी तरह तबाही झेल चुके जापान को अपने लौह अयस्क पहुंचा कर मदद की। 1957 में जापानी प्रधानमंत्री नोबुसूके किशी ने भारत का दौरा किया और इसके बाद 1958 से जापान ने भारत को अपनी मुद्रा येन में ऋण देने शुरू कर दिये।

    हालांकि इसके बाद की शीत युद्ध की राजनीती ने रिश्तों में रुकावटें डालीं। जापान अमरीका का साथी था और भारत की सोवियत यूनियन के साथ करीबियां बढीं।

    1980 के दशक से एक बार फिर द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने पर जोर दिया गया और ‘लुक ईस्ट’ नीति के तहत भारत ने जापान को ख़ास साथी का दर्जा दिया।

    1998 में भारत ने पोकरण में परमाणु बम का परीक्षण किया, इसके बाद जापान ने भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये जिससे की संबंध एक बार फिर ठन्डे बस्ते में चले गये।

    ये प्रतिबंध 3 वर्षों बाद हटा लिये गए और उसके बाद से ही संबंधों में बेहद अच्छा उछाल दिखा। साल 2014 में जापानी प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाये गए।

    2014 में ही प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने जापान का दौरा किया जिस दौरान अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें रक्षा संधि से लेकर आधारभूत ढांचे के विकास को लेकर हजारों करोड़ डॉलर का भारत में निवेश शामिल था. प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में एक बार फिर जापान का दौरा किया और इस दौरान परमाणु उर्जा के शांति के लिये उपयोग को लेकर दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

    आर्थिक और रक्षा संबंध:

    आज जापान और भारत एशिया की क्रमश: दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। दोनों के बीच का व्यापर 15 बिलियन डॉलर है और इसके 2020 तक 50 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। भारत-जापान के द्विपक्षीय सहयोग को `स्पेशल स्ट्रेटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप` ढांचे के  अंदर किया जाता है।

    जापानी पीएम शिंज़ो आबे और भारतीय पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्तों को नयी ऊंचाई पहुंचाई है। सितम्बर 2017 में शिंज़ो आबे के भारत के दौरे के दौरान मुंबई-अहमदाबाद के बीच पहली बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की नींव रखी गयी।

    इस प्रोजेक्ट को जापान 80% तक की आर्थिक मदद दे रहा है जोकि करीब 88 हज़ार करोड़ रूपए बैठती है। इसे वह ऋण के तौर पर भारत को दे रहा है जिसे भारत 50 सालों की अवधी में 0.1% की ब्याज़ दर पर चुका सकेगा।

    इसके साथ ही जापान भारत के तीन शहरों- चेन्नई, अहमदाबाद और वाराणसी को ‘स्मार्ट सिटी’ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मदद देगा।

    अमरीका के साथ होने वाले भारतीय नौसेना के मालाबार अभ्यास का जापान भी अब पूर्ण सदस्य बन चुका है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व का सामना करने के उद्देश्य से कई समझौते किये हैं।

    हाल ही में हुए चीन-भारत के डोकलाम विवाद में जापान अकेला राष्ट्र था जिसने भारत का खुले मंच से साथ दिया।

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