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    Chabahar Deal

    Chabahar Port Deal: भारत और ईरान के बीच सोमवार (13 मई2024) को रणनीतिक रूप से अतिमहत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह  पर एक टर्मिनल के संचालन के लिए सोमवार को 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर हुआ।

    चाबहार ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में एक गहरे पानी तक बंदरगाह है। यह ईरानी बंदरगाह (Chabahar Port) भारत के सबसे नजदीक है और खुले समुद्र में स्थित है; जो बड़े मालवाहक जहाजों के लिए आसान और सुरक्षित पहुंच प्रदान करता है। इसी महत्व को देखते हुए भारत के इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) तथा बंदरगाह तथा समुद्री-सीमा संस्था (PMO) के बीच तेहरान में दोनों तरफ़ के मंत्रियों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया है।

    इस समझौते के तहत, IPGL कॉन्ट्रैक्ट-समय सीमा के दौरान लगभग 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा और दोनों पक्ष इसके बाद भी सहयोग को आगे बढ़ाएंगे। साथ ही, भारत ने लगभग ‘रुपये’ में 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर कर्ज़ का विकल्प भी खुला रखा है जिसे पारस्परिक समझ से तय किये गए बंदरगाह (Chabahar Port) से जुड़े आधारभूत संरचना को विकसित करने में खर्च किया जाएगा।

    महत्वपूर्ण है चाबहार बंदरगाह (Chabahar Port)

    Chabahar Port on Global Map
    Chabahar Port on Global Map: Chabahar Port gives India an access to Afghanistan, Central Asia and even to Europe. (Image Source: Google/Scroll.in)

    आधुनिक चाबहार 1970 के दशक में अस्तित्व में आया और जल्दी ही 1980 के आसपास इराक़-ईरान युद्व के दौरान इसकी रणनीतिक महत्ता का एहसास हुआ।

    यह बंदरगाह (Chabahar Port) पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (Gwadar Port, Pakistan) से मात्र 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारत के लिए यह बंदरगाह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान द्वारा रोक लगाए जाने के बाद भारत के लिए अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए एक विकल्प के तौर पर उपयोगी है। साथ ही, इस रास्ते भारत मध्य एशिया, दक्षिण एशिया तथा यूरोप के बाजारों तक पहुंच सकता है।

    भारत के लिए इस परियोजना का महत्व इसलिए भी है कि चाबहार तथा इस से जुड़े परियोजनाओं को विकसित करने के प्रयास को चीन के बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) के ख़िलाफ़ भारत के कूटनीतिक प्रयास का हिस्सा भी माना जाता है।

    भू-राजनीति से प्रभावित रहा है यह डील

    2002 में भारत और ईरान के बीच इस बंदरगाह को विकसित करने की पहल पर चर्चा शुरू हुई। साल 2003 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति खतमी के बीच एक महत्वाकांक्षी रणनीतिक सहयोग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके तहत ही सबसे महत्वपूर्ण फैसला यह था कि दोनों मुल्क चाबहार बंदरगाह को विकसित करने पर राजी हुए।

    परंतु यह महत्वकांक्षी परियोजना (Chabahar Port Deal) ठंडे बस्ते में तब चला गया जब भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच 2007 में हुए नाभिकीय समझौता के बाद संबंध लगातार प्रगाढ़ हुए । इसी दौरान अमेरिका द्वारा इराक़ और उत्तर कोरिया के साथ साथ ईरान को “बुराई की धुरी (Axis of Evil)” घोषित करने से नई-दिल्ली पर तेहरान के साथ संबंधों (India-Iran Bilateral Relations) को धीमा करने का दवाब बढ़ा जिससे चाबहार बंदरगाह का यह महत्वाकांक्षी परियोजना मृतावस्था में चला गया।

    साल 2015 तक भारत लगभग 100 मिलियन लागत से पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के डेलराम से ईरान-अफगान सीमा पर स्थित ज़रंज तक 218 KM लंबी सड़क परियोजना का निर्माण कराया लेकिन चाबहार बंदरगाह को विकसित करने की योजना शिथिल ही पड़ी रही।

    परंतु हालात तब बदलने शुरू हुए जब 2015 में ईरान और P-5+1 देशों के बीच बातचीत के नतीजे आने के बाद चीजें बदलनी शुरू हुई। हालांकि 2017 में फिर से अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने और ईरान के साथ उनके मतभेद के कारण इस परियोजना पर फिर से संकट के बादल घिरते दिखे।

    परंतु भारत ने किसी तरह कूटनीतिक शक्ति का इस्तेमाल कर के भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह परियोजना (Chabahar Port Deal) के लिए अमेरिका से अनौपचारिक सहमति हासिल कर ली।

    Chabahar Port Deal में हालिया विकास

    A Glimpse of Chabahar Port.

    इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) 24 दिसंबर, 2018 से अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल चाबहार फ्री जोन (आईपीजीसीएफजेड) के माध्यम से चाबहार बंदरगाह (Chabahar Port) का संचालन कर रहा है। बंदरगाह ने 90,000 से अधिक बीस-फुट-समतुल्य इकाइयों (टीईयू) कंटेनर यातायात तथा 8.4 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) थोकऔर इससे अधिक सामान्य कार्गो को संभाला है।

    इस बंदरगाह (Chabahar Port) ने मानवीय सहायता की आपूर्ति को भी सुविधाजनक बनाया है, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान। अब तक, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत से अफगानिस्तान तक कुल 2.5 मिलियन टन गेहूं और 2,000 टन दालें भेजी जा चुकी हैं। 2021 में, भारत ने टिड्डियों के हमलों से लड़ने के लिए ईरान को बंदरगाह के माध्यम से 40,000 लीटर पर्यावरण अनुकूल कीटनाशक (मैलाथियान) की आपूर्ति भी की गयी थी।

    अगस्त 2023 में, प्रधान मंत्री मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर जोहान्सबर्ग में राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी से मुलाकात की और चाबहार पर लंबित दीर्घकालिक अनुबंध पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने दीर्घकालिक अनुबंध को अंतिम रूप देने और हस्ताक्षर करने के लिए एक स्पष्ट राजनीतिक निर्देश दिया।

    Chabahar Port और INSTC

    INSTC: A Multi-model Project by India, Iran & Russia
    Chabahar Port can be an Important asset in context of INSTC. (Pic Source: X.com/ @CheburekiMan)

    दीर्घकालिक निवेश के संचालन के साथ, चाबहार (Chabahar Port) संभावित रूप से भारत को मध्य एशिया और अफगानिस्तान के भूमि से घिरे देशों से जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है। हालाँकि, इसकी वाणिज्यिक और रणनीतिक क्षमता को बेहतर ढंग से समझने के लिए, बंदरगाह के विकास को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) की बड़ी कनेक्टिविटी परियोजना के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।

    INSTC, जिसे रूस, भारत और ईरान द्वारा शुरू किया गया था, एक बहु-मॉडल परिवहन मार्ग है; जिसकी परिकल्पना हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर तक और रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक जोड़ने के लिए की गई है। हालाँकि, यूक्रेन में युद्ध और रूस के साथ यूरोप के संबंधों के विनाश ने इस परियोजना के भविष्य को जटिल बना दिया है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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