Right against ‘havoc’ being caused by Climate Change: पिछले हफ्ते The Great Indian Bustard (सोहन चिड़िया)- एक संकटग्रस्त पक्षी से संबंधित मामले में सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि जलवायु-परिवर्तन (Climate Change) के कुप्रभावों से मुक्ति पाना लोगों का एक मूल अधिकार है और यह अधिकार भारतीय संविधान के तहत जीवन के अधिकार और बराबरी (समता) के अधिकार के तरह सुनिश्चित है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ हवा और स्वच्छ पर्यावरण (Right to Clean Air and Clean Environment) का अधिकार पहले ही मूल-अधिकारों में शामिल है और इसी परिप्रेक्ष्य में जलवायु-परिवर्तन के बढ़ते लगातार कुप्रभावों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि इसके कुप्रभावों से संरक्षण के अधिकार को अलग से देखने की आवश्यकता है।
दिलचस्प बात यह है कि शीर्ष अदालत द्वारा इस नए अधिकार की विस्तृत व्याख्या एक ऐसे मामले में हुई जिसमें जलवायु-परिवर्तन केवल तर्कों तक ही आकस्मिक और सीमित था।
दरअसल, असली मुद्दा एक संकटग्रस्त पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) से संबंधित था जिसमें कुछ साल पहले कोर्ट ने कुछ निर्देश जारी किए थे, जिन्हें लागू करना केंद्र सरकार को बहुत अव्यवहारिक लगा।
इस मामले में तीन सरकारी विभागों ने 2021 के पहले के आदेश को संशोधित करने के लिए अदालत में याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि उनमें से कुछ निर्देशों ने भारत की नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) संभावनाओं को प्रभावित किया है, जो बदले में भारत सरकार की जलवायु-परिवर्तन (Climate Change) कार्य योजना और इस संबंध में कई गई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्रभावित कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय सरकार के दिये गए तर्कों से सहमत होते हुए अपने आप पुराने आदेश में परिवर्तन करने पर सहमत दिखा लेकिन इसी के साथ जलवायु-परिवर्तन (Climate Change) और उसके प्रभावों से संरक्षण के अधिकार की बहस को एक नया मोड़ दे दिया जिससे आमजन की एक बड़ी तादाद प्रभावित होती है।
विगत कुछ दशकों में न सिर्फ भारत के अदालतों में बल्कि दुनिया भर के अदालतों में जलवायु-परिवर्तन से संबंधित मामलों (Litigation related to Climate Change) की संख्या बढ़ रही है जिसमें लोग इस समस्या के कुप्रभावों से संरक्षण हेतु कानूनी हल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।
Climate litigation cases are growing worldwide.
Youth, women, and Indigenous communities are demanding #ClimateAction & justice through legal channels, driving climate change governance reform around the world.
More in UNEP’s report with @SabinCenter: https://t.co/fmNX3IiyzH pic.twitter.com/Q0yC6PmOB0
— UN Environment Programme (@UNEP) January 27, 2024
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन रिपोर्ट (Global Climate Litigation Report) के 2023 संस्करण में यह बताया गया है कि तकरीबन 65 देशों की अदालतों, न्यायाधिकरणों और अन्य न्यायिक निकायों कब समक्ष 2180 जलवायु-संबंधित मामले आये हैं।
इसी रिपोर्ट के 2020 संस्करण 39 देशों में 1,550 मामलों की पहचान की गई थी; जबकि 2017 में 24 देशों में 884 मामले पाए गए थे। ज़ाहिर है, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं और इस वजह से लगातार कानूनी संरक्षा भी तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।
इन मामलों में ज्यादातर मामले अमेरिका या यूरोपियन देशों के विकसित देशों में पाए जाते हैं। लेकिन 2023 के रिपोर्ट में यह सामने आया है कि अब ऐसे मामलों की तादाद विकासशील देशों में भी बढ़ रहे हैं। भारत मे ऐसे कुल 11 मामले दर्ज किए गए हैं जो दुनिया भर में एक देश मे दर्ज किए मामलों में 14वां स्थान है।
इनमें से ज्यादातर मामलों में आमजन के अधिकारों की बात होती हैं जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के अभी हालिया मामले में दिखा है। याचिकाकर्ताओं ने जीवन के अधिकार, स्वास्थ के अधिकार, मानवाधिकार, भोजन के अधिकार, स्वच्छ पानी, हवा, पर्यावरण, से लेकर पारिवारिक जीवन से सम्बंधित मामलों को उद्धृत करते हुए क्लाइमेट एक्शन की अपील की है।
अभी हालिया एक मामले में यूरोपियन मानवाधिकार कोर्ट के सामने स्विट्ज़रलैंड की उम्रदराज महिलाओं ने यह मामला उठाया था कि लगातार बढ़ते खतरनाक हीट-वेव (Heat Wave) के कारण उनके पारिवारिक जीवन के अधिकार (Right to have Family Life) का हनन हो रहा है। अदालत ने भी यह माना कि स्विट्जरलैंड की सरकार ने निश्चित तौर पर उनके मानवाधिकार का उल्लंघन किया है।
कुछ अन्य मामलों में लोगों ने मौजूदा पर्यावरण संबंधित कानूनों या नीतियों के प्रवर्तन में कमी के लिए सरकार पर और दायित्व, मुआवजे या ग्रीनवाशिंग के लिए निगमों पर मुकदमा दायर किया है।
भारत के अदालतों में भी जलवायु संबंधित मामलों की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन आजतक ऐसे मामलों को “जलवायु-याचिका (Climate litigation)” के रूप में अलग से वर्गीकृत नहीं कर किया गया है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) जो विशेष रूप से पर्यावरणीय मामलों से निपटता है, लेकिन पर्यावरण संबंधी याचिकाएं नियमित रूप भारत के उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालयों में आते रहती हैं।
हालाँकि सच यह भी है कि जलवायु-परिवर्तन (Climate Change) की व्यापक समस्या का जिक्र करने वाली याचिकाओं के बहुत कम उदाहरण सामने आए हैं। पिछले हफ्ते के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अब इसमें बदलाव आना संभव है।
ऐसे में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि भारत सहित दुनिया भर के अदालतों में जलवायु संबंधी मामलों में बढ़ोतरी ने अदालतों को संवेदनशील बना दिया है जो अब अनुकूल निर्णय देने के लिए पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं।
यद्यपि कि कोर्ट के बढ़ते सक्रियता में सरकार और कॉरपोरेट जलवायु संबंधी दायित्वों में अधिक जवाबदेही स्थापित करने की शक्ति है, लेकिन इस से जलवायु-परिवर्तन (Climate Change) से समग्र खतरे को लेकर सरकार या व्यवस्था के रवैये में कोई अमूलचूल परिवर्तन आ जायेगा, ऐसी उम्मीद करना ज्यादती होगी।
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Thanks. Hausala Afzaai k liye Shukriya!