Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के लगभग 1876 वर्ग किमी में फैले जंगल हसदेव अरण्य (Hasdeo Arand) क्षेत्र में परसा ईस्ट और कांता बेसिन (PEKB) कोयला खदान के लिये लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं। इसे लेकर छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में पिछले कई सालों से आदिवासी समुदाय के लोग आंदोलनरत हैं।
परसा ईस्ट और कांता बेसिन (PEKB) को अडानी समूह द्वारा संचालित राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किया गया है। एक अनुमान के मुताबिक, PEKB की कोयला खनन क्षमता क्रमशः 2 करोड़ टन प्रतिवर्ष है। इसमें परसा में 50 लाख टन और कांटा में 70 लाख टन सालाना होगी।
छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में स्थित हसदेव वन क्षेत्र (Hasdeo Arand) 1,70,000 हेक्टेयर में फैला है। यहाँ भारत सरकार ने कोयला खदान का प्रस्ताव रखा है। इस घने जंगल में कुल 05 अरब टन कोयला होने का अनुमान है।
इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ के भीतर सियासी पारा भी चढ़ा है। राज्य की सत्ता से हाल ही में बेदखल हुई कांग्रेस भाजपा सरकार को घेर रही है तो भाजपा इस पूरे मसले का ठीकरा राज्य की पुरानी कांग्रेस सरकार पर थोप कर पल्ला झाड़ रही है।
हसदेव में जंगल कटाई के खिलाफ चल रहे आंदोलन में पिछली सरकार के उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव अपना समर्थन देने पहुँचे.
26 जुलाई 2022 को विधानसभा में सर्वसम्मति से हसदेव अरण्य में सभी खदानों की अनुमतियाँ निरस्त करने के संकल्प का पालन, राज्य सरकार ने किया होता तो लाखों पेड़ बच जाते. pic.twitter.com/uDLUohFG2Y
— Alok Putul (@thealokputul) December 25, 2023
दरअसल पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने जून 2011 में सरकार को यह सलाह दी थी कि खनन के लिए वन भूमि का उपयोग न करने की सलाह दी थी। तब केंद्र में कांग्रेस के अगुवाई वाली UPA गठबंधन की सरकार थी।
परंतु साल 2012 में केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) ने PEKB कोयला खदानों में प्रथम चरण की कोयला खनन की मंजूरी यह कहते हुए दे दी कि कोयला खनन घने जंगल (Hasdeo Arand) से दूर कहीं और होगा।
साल 2022 मार्च में छत्तीसगढ़ की सरकार ने घोषणा की कि उसने PKEB कोयला ब्लॉक के दूसरे चरण के खनन के लिए 1136 हेक्टेयर क्षेत्र में कोयला खनन के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को अधिकृत किया है।
तत्कालीन राज्य सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध हुआ और सरकार ने अपने ही फैसले पर अनिश्चित काल के लिए रोक लगा दी थी। परंतु जैसे ही राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ है, स्थानीय लोगों का कहना है कि एक बार फिर से जंगल की कटाई शुरू हो गई है।
प्रमुख पत्रिका Down To Earth मे छपे एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में 43 हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ काटे गए जबकि 2023 की शुरुआत में उसी क्षेत्र में अन्य 91 हेक्टेयर पेड़ कटाई का शिकार हो गए। इस बार 21 दिसंबर 2023 के बाद से वनों की कटाई की गतिविधियां अधिक हुईं हैं।
हसदेव (Hasdeo Arand) अपने भीतर एक बड़ी जैव विविधता को समाहित करता है। यह महानदी के सबसे बड़ी सहायक नदी हसदेव का जल ग्रहण क्षेत्र है। यहाँ हाथियों, भालू, सरीसृप और कई अन्य प्रकार के जानवरों का घर है। इस जंगल मे साल और महुआ जैसे आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से कई महत्वपूर्ण पेड़ हैं, जो स्थानीय लोगों की आजीविका का भी साधन भी है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRI) के अध्ययनों में भी हसदेव अरण्य क्षेत्र में जैव विविधता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया गया है कि अन्य राज्यो की तुलना में छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या कम होने के बावजूद भी यहाँ मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। इसकी वजह वन्य जीवों के निवास का क्षरण या जंगलों की कटाई है।
विरोध की एक वजह यह भी है कि हसदेव वन क्षेत्र का यह इलाका संविधान के पाँचवी अनुसूची में आता है। ऐसे में वहाँ खनन करने के लिए ग्राम-सभा की मंजूरी जरूरी है। लेकिन आंदोलन कर रहे लोगों का दावा है कि यह आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई है। ऐसा कहा जाता है कि आदिवासी समुदायों द्वारा खनन कार्यों के अनुमोदन दर्शाने के लिए फर्जी ग्राम सभाओं की भी स्थापना की गई।
इसी वजह से हसदेव अरण्य (Hasdeo Arand) को बचाने के लिये लगातार बड़ी मुहिम चल रही है। हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में वनों की कटाई का पोस्ट भी वायरल हुआ है। आदिवासियों का यह विरोध अब सिर्फ छत्तीसगढ़ तक ही महदूद नहीं है बल्कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश और उड़ीसा में भी इसका विरोध जारी है।
हसदेव जंगल के पेड़ों की कटाई और आदिवासी दमन के खिलाफ मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित टंट्या भील चौराहे पर आदिवासी समुदाय के युवाओं ने एकत्रित होकर जिला कलेक्टर ऑफिस तक रैली निकाल कर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया। हसदेव जंगल बचाने का संघर्ष हमारा आखिरी सांस तक जारी रहेगा। #SaveHasdeo pic.twitter.com/iQLrHBmaOd
— Tribal Army (@TribalArmy) January 4, 2024
लेकिन विडंबना यह कि इस वृहत स्तर के विरोध के बावजूद छत्तीसगढ़ की जनता की आवाज़ केंद्र सरकार तक या तो पहुँच नहीं रही है या फिर पहुंचने नहीं दिया जा रहा है। राष्ट्रीय मीडिया राम मंदिर के हर छोटे बड़े कहानियों और एक-एक ईंट पर चर्चाएं किये जा रही है लेकिन उसी राम के ननिहाल महाकौशल यानी छत्तीसगढ़ की आदिवासी जनता की आवाज़ को एक राष्ट्रीय मंच नहीं मिल रहा।
अफसोस है कि भारत द्वारा प्रदूषण, पर्यावरण आदि जैसे मुद्दे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तो खूब शेखी बघारी जाती है लेकिन ये मुद्दे देश के भीतर आज भी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाते। सरकारें आती है… जाती हैं; कभी इस पार्टी की तो कभी उस राजनीतिक दल की तो कभी किसी और दल की… लेकिन पर्यावरण, प्रदूषण, या हसदेव जैसे वनों की कटाई जैसे मुद्दे आज भी गौण ही रहते हैं।