Gaza Under Attacks: पिछले महीने जब 07 अक्टूबर को ग़ज़ा के आतंकवादी संगठन HAMAS ने इजराइल पर हमला किया और बदले में इजराइल ने ग़ज़ा पर आक्रमण किये तो पूरी दुनिया ने एक सुर में इजराइल के समर्थन किया कि उसे अपनी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई करने का पूरा हक है।
07 अक्टूबर को हमास (HAMAS) द्वारा हुए इस हमले में तक़रीबन 1200 इजराइली नागरिकों की मौत हुईं और क़रीब 200 से ज्यादा नागरिकों को हमास (HAMAS) द्वारा बंधक बनाकर ग़ज़ा ले जाया गया।
इस हमले के जवाब में इजराइल ने ग़ज़ा (Gaza) के ऊपर लगातार हवाई हमले किये। वर्तमान में इजराइल ने जमीनी कार्रवाई भी करना जारी रखा है। इजराइल की सेना ने ग़ज़ा के केंद्र में स्थित हमास के मिलिट्री बेस को भी तबाह करने का दावा किया है।
ग़ज़ा (Gaza) में हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इजराइल के द्वारा मिसाइलों और बमबारी से हुए हमले में अब तक ग़ज़ा के कुल 10,800 बेक़सूर नागरिकों की मौत हुई है जिसमें लगभग 4000 बच्चे भी शामिल है।
दूसरी तरफ इजराइल डिफेंस फ़ोर्स (IDF) ने बीते गुरुवार को एक बयान में कहा है कि अभी तक लगभग 1 महीने की लड़ाई के बाद इस लड़ाई में इजराइल ने हमास के कुल 50-60 आतंकियों को मार गिराया है।
Gaza under Attacks: कई अनसुलझे सवाल
इन्हीं आंकड़ों के आधार पर कई सवाल अब खड़े होने लगे हैं। जैसे-क्या इजराइल वाक़ई में हमास को ही खत्म करना चाहता है या उसका मकसद कुछ और भी है? क्या अंधाधुंध मिसाइलों और बमों के हमले से इजराइल के वे नागरिक भी जिन्हें हमास ने बंधक बना लिया था, उनकी मौत नही होगी? और यह भी कि 1 महीने के अंतराल में इतनी भारी संख्या में आम बेकसूर नागरिकों को मार देना महज़ आतंक के ख़िलाफ़ की लड़ाई की बानगी है?
आपको बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध मे 21 महीने के युद्ध मे कुल 9700 नागरिकों की मौत हुई है। जबकि इजराइल द्वारा ग़ज़ा (Gaza) पर हुए हमले में सिर्फ 1 महीने में लगभग 10,000 आम नागरिकों को मार दिया गया है। इन हमले में हमास (HAMAS) के महज 60 लोगों की मौत हुई है।
इजराइल ने ग़ज़ा पट्टी (Gaza Strip) के छोटे से इलाके में इतने बम गिराए हैं कि उनकी कुल विस्फोटक क्षमता 2 हिरोशिमा नाभिकीय बम की क्षमता के बराबर है। इस बमबारी और मिसाइलों के अटैक से क्या कोई अस्पताल, स्कूल या शरणार्थियों के रहने की जगह बची रहेगी? ऐसे में क्या यह सवाल उठना लाज़िमी नहीं है कि क्या यह आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई है या फिर इसका मक़सद कुछ और ही है?
शायद यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation Organization) ने इजराइल और हमास (HAMAS) दोनों के कृत्य को “वॉर क्राइम (War Crime)” बताया है। परंतु इस युद्ध मे संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) क्या अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर पाया है, यह भी एक बड़ा सवाल है।
कुल मिलाकर ऐसे अनेकों सवाल हैं जो इजराइल द्वारा ग़ज़ा (Gaza) पर चल रहे “आतंक के खिलाफ युद्ध” को लेकर संदेह पैदा करते हैं।
क्या इजराइल का मक़सद – सिर्फ हमास का खात्मा ही है?
दरअसल पहली नज़र में यह सब तो 07 अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर हुए आतंकवादी हमले की जवाबी कार्रवाई ही लगती है लेकिन जब इतिहास के पन्ने सामने खोलकर देखा जाए और वर्तमान में मौत के आंकड़ों को उसके समानांतर रख पर तमाम अलग अलग बिन्दुओं को जोड़कर एक मुकम्मल तस्वीर खींचने की कोशिश की जाए तो यह युद्ध “आतंक के खिलाफ कार्रवाई” से कहीं आगे की कहानी लगती है।
इजराइल और फिलिस्तीन का विवाद (Israel-Palestine Conflict) कोई इतना आसान या अभी का उत्पन्न विवाद है नहीं। यह काफी जटिल है जिसका समाधान शायद ही इस दुनिया के पास हो। अगर साधारण शब्दो मे कहा जाए तो विवाद का मूल है यहूदियों के द्वारा अरबों की जमीन फिलिस्तीन पर अपना एक अलग देश इजराइल के निर्माण करना।
आज का इजराइल जिसे पूर्व में कनान के नाम से जानते थे, यहाँ अरबों का निवास हुआ करता था। यहूदी (Jews) इसे अपना पवित्र भूमि मानता है और इसी लिए यहूदियों के लिए जब एक अलग राष्ट्र बसाने की बात हुई तो फिलिस्तीन का यह हिस्सा चुना गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो राष्ट्र सिद्धांत के तहत फिलिस्तीन (Palestine) को बांटकर एक स्वतंत्र राष्ट्र इजराइल की स्थापना की गई। (इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी के लिए हमारे पुराने लेखन को पढ़ा जा सकता है.)
Gaza पर हमला क्या इजराइल के भूभाग प्रसार की नीति?
1948 में अस्तित्व में आने के बाद से ही इजराइल लगातार कई युद्धों में जीत हासिल करके अपने भूभाग का विस्तार करता रहा है। कई बार ये युद्ध उसके ऊपर अरब देशों द्वारा थोपे गए हैं तो कई बार स्वेज नहर विवाद जैसे मुद्दे पर इजराइल खुद भी युद्ध मे शामिल होता रहा है।
1956 में लगभग 1 महीने तक चले युद्ध मे इजराइल ने मिस्र से सिनाई क्षेत्र (Sinai Peninsula) को कब्जा कर लिया था जो बाद में मिस्र-इजराइल शांति समझौता 1979 के प्रावधानों के तहत इजराइल ने मिस्र को वापस कर दिया।
1967 में हुए छः-दिवसीय युद्ध के दौरान इजराइल ने जॉर्डन और फिलिस्तीन से वेस्ट बैंक (The West Bank), सीरिया और लेबनान से गोलन हाइट्स (Golan Heights) को कब्ज़ा कर लिया जिसे आजतक अपने नियंत्रण में रखा है।
ग़ज़ा पट्टी (Gaza Strip) को भी मिस्र और फिलिस्तीन से छीनकर इजराइल ने 2005 तक अपना नियंत्रण रखा लेकिन बाद में उसे हमास (Hamas) के नियंत्रण में छोड़ दिया।
अब इसी संदर्भ में इजराइल द्वारा जारी वर्तमान सैन्य कारवाई को देखें तो हमास द्वारा हमला ने इजराइल को एक ऐसा मौका दिया है जिसका जिक्र दबी जुबान में इजराइल के बडे नेता अक्सर करते रहे हैं। इजराइल अपने भूभाग का प्रसार हमेशा से करना चाहता रहा है, यह बात किसी से छुपी नहीं है।
इजराइल के ही एक महिला नेता गलित डिस्टल अतबरयाँ (Galit Distel Atbaryan) जो पिछले महीने तक नेतन्याहू के कैबिनेट में पब्लिक डिप्लोमेसी मंत्री थीं, ने कहा है कि ग़ज़ा (Gaza) को दुनिया के नक्शे से ही मिटा देना चाहिए। उनके अनुसार, ग़ज़ा के लोग या तो वहाँ से कहीं और पलायन कर जाओ या मरने को तैयार रहें।
उनके इस बयान में ध्यान देने वाली बात है यह है कि नेतन्याहू के पूर्व कैबिनेट मंत्री, ग़ज़ा (Gaza) के तमाम लोगों के बारे में बात कर रही है, न कि सिर्फ हमास (HAMAS) के आतंकियों की।
अभी ग़ज़ा (Gaza) के ऊपर जिस तरह से लगातार बमबारी और मिसाइल व रॉकेट्स से हमला हुआ है, यह कहीं से हमास के खात्मे वाले दावे पर केंद्रित हमला नहीं लगता। 10,000 बेकसूर नागरिकों की मौत जिसमे 4000 मासूम बच्चे भी शामिल है, के मुक़ाबले हमास से जुड़े मात्र 60 आतंवादियों की मौत के दावे इस तर्क का कतई समर्थन नहीं करते कि इजराइल के यह युद्ध का एकमात्र मक़सद आतंक के खिलाफ लड़ाई जैसा है।
ऐसे में यह कहना कतई भी तर्कविहीन नहीं होगा कि क्या इजराइल के इस युद्ध के पीछे हमास महज़ एक बहाना है? क्या इजराइल का कहीं और निशाना है? क्या यह युद्ध इजराइल के प्रसार नीति का हिस्सा है?
शायद यही वजह है कि इजराइल द्वारा ग़ज़ा (Gaza) के लोगों को उत्तरी हिस्से को छोड़कर दक्षिणी ग़ज़ा (Southern Gaza) के तरफ़ जाने के लिए बार बार आगाह करने के बाद भी वहाँ के स्थानीय लोग उस हुज़ूम के साथ पलायन नहीं कर रहे हैं जैसे किसी युद्ध में होता है। यह शायद इसलिए कि वहाँ के लोगों को मालूम है कि अगर एक बार पलायन कर गए तो वापस आना शायद मुश्किल है।
Gaza के मामले में चुप क्यों हैं पश्चिमी देश?
एक बात और कि आखिर इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी लोगों के मानवाधिकार के तार तार होने के बावजूद विश्व की वे पश्चिमी शक्तियां जो खुद को मानवाधिकार का चैंपियन घोषित करने में जरा भी नहीं चूकते, वे इस मुद्दे (Gaza Under Attacks) पर लगातार खामोश क्यों हैं? यहाँ तक कि ऐसा आरोप भी लग रहा है कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश अप्रत्यक्ष रूप से इजराइल को मूक समर्थन दे रहे हैं?
इसके कई वजहें हैं जो विश्व-राजनीति में चर्चा में है। एक तो यह कि ग़ज़ा (Gaza) के साथ लग रहे भूमध्य सागर (Mediterranean Sea) में प्राकृतिक संसाधनों का मौजूद होना। जिस दिन इजराइल हमास पर कार्रवाई के नाम पर ग़ज़ा (Gaza) पर आक्रमण कर रहा था, उसी के अगले दिन वह ब्रिटेन और यूरोपीय कंपनियों को ग़ज़ा के समुद्री तट पर प्राकृतिक गैस भंडार के खोजने का लाइसेंस प्रदान करता है।
दूसरा एक और सबसे बड़ी वजह है- बेन गुरियन नहर परियोजना (Ben Gurion Canal)। इसे स्वेज नहर के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। यह नहर लाल सागर को अकाबा की खाड़ी से होते हुए ग़ज़ा पट्टी के रास्ते भूमध्यसागर से जोड़ देगा. लिहाज़ा, इसके निर्माण के बाद यूरोपीय देशों को एशिया से व्यापार के लिए स्वेज नहर – जो अभी मिस्र के नियंत्रण में है- पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।
कुल मिलाकर इजराइल अगर ग़ज़ा पट्टी (Gaza Strip) को अपने नियंत्रण में ले लेता है तो उसके कई महत्वाकांक्षी हित सध जाएंगे जिसका इंतजार उसे वर्षों से रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा हमास द्वारा हुए आतंकवादी हमले ने इजराइल को यह मौका थाली में सजाकर परोस दिया है।
हालांकि, यहां एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि उपरोक्त तमाम कयास और दृष्टिकोण का मक़सद इजराइल-फिलिस्तीन विवाद का कोई समाधान हासिल करना नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि इस पूरे विवाद को इस दृष्टिकोण से भी देखे जाने की भी आवश्यकता है। इसे नकारा नहीं जा सकता।
हमास ने 07 अक्टूबर को जो आतंकवादी हमला इजराइल पर किया, उसका कतई समर्थन नही किया जा सकता है लेकिन उसके बाद जो जवाबी कार्रवाई इजराइल कर रहा है उसका भी समर्थन नहीं किया जा सकता है। मानवाधिकार की रक्षा दोनों पक्षो के पीड़ितों की होनी चाहिए-चाहे वह कोई फिलिस्तीनी हो या फिर इजरायली नागरिक।
आपके लिखने का अंदाज़ बहुत अच्छा है। आप पढ़ने वाले का ध्यान उस ओर भी आकर्षित कर देते है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।।सोच का दायरा ही बढ़ जाता है।। इसके लिए शुक्रिया🙏🙏🙏🙏🙏
आप बहुत अच्छा लिखते है।।पढ़ने वाले कि सोच को उस ओर भी आकर्षित करते है जहा तक सोच पाना आसान नहीं।।शुक्रिया सोच का दायरा बढ़ाने और मुद्दे के सभी पहलु से रूबरू करवाने के लिए🙏🙏
Superbbb