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    वाखान क्षेत्र

    अफगानिस्तान काफी समय से लगातार आतंकी हमलों का दंश झेल रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान व हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों द्वारा हमले किए जाते है। काबुल सहित देश के विभिन्न जगहों पर इन संगठनों ने आतंकी हमले किए है। तालिबानी संगठन पूरे अफगानिस्तान में आतंक फैलाना चाहता है। साथ ही सभी जगहों पर अपना दबदबा स्थापित करना चाहता है।

    लेकिन अफगानिस्तान में एक ऐसी जगह भी है जो तालिबान से पूरी तरह अछूता है। इस जगह पर तालिबान तो दूर सरकार की भी नजर नहीं है। 19वीं शताब्दी में निर्मित, वाखान कॉरिडोर ने न तो कोई सरकार देखी है और न ही कोई आक्रमण देखा है। वे तालिबान का नाम तक ढंग से नहीं जानते है।

    वाखान उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान में स्थित एक अत्यन्त पर्वतीय और दुर्गम क्षेत्र है। अफगान का ये हिस्सा चीन के शिंझियांग प्रांत को भी छूता है। अफगानिस्तान के सुदूर पहाडी क्षेत्र में जब सुल्तान बेगम से जब तालिबान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये तालिबान क्या है। ये क्षेत्र इतनी दूरी पर स्थित है कि दशकों से यहां पर सरकार व आतंकी संगठनों की नजर तक नहीं गई है।

    मौजूदा स्थितियों से अनभिज्ञ है यहां के निवासी

    इस क्षेत्र में करीब 12000 लोग निवास करते है। तजाकिस्तान और पाकिस्तान के पहाड़ों की सीमा व चीन से लगती सीमा के पास है जो अफगान के सुदूर इलाकों में स्थित है। यहां के लोगों को अफगान मे चल रही वर्तमान स्थिति के बारे मे कुछ भी पता नहीं है। बस उन्हें रूसी सैनिकों के बारे मे जरूर याद है। इन लोगों के कई सालों पहले हुई रूसी सैनिकों व मुजाहिदीन संघर्ष के बारे में जरूर पता है।

    इनके हमलों में करीब दस लाख से अधिक नागरिको और हजारों लोग विस्थापित हो चुके थे। पाकिस्तानी व्यापारियों से तालिबान के बारे में जरूर कुछ लोगों ने सुन रखा है। उनके मुताबिक तालिबान किसी अन्य देश से बहुत बुरे लोग हैं जो भेड़ों की तरह बलात्कार करते है और इंसानों को मारते है। साल 2001 मे तालिबान के ऊपर अमेरिका द्वारा किए गए हमले के बारे मे इन्हें पता नहीं है।

    इंटरनेट व फोन की नहीं है सुविधा

    वाखान लोगों के जीवन की बात करे तो ये अपराध और हिंसा से काफी हद तक दूर रहते है। ये याक व मवेशी के साथ घूमते रहते है। कुछ घूमने आए व्यापारियों से ये लोग कपडों व भोजन की व्यवस्था कर लेते है। इन लोगों के पास कोई इंटरनेट या मोबाइल फोन सेवा नहीं है।

    अक्सर वॉकी-टॉकी द्वारा विशाल इलाके में एक-दूसरे के साथ बातचीत करनी पडती है। इनके पास रेडियो प्रसारण भी सीमित रूप से उपलब्ध है। यहां रूसी प्रसारणों या अफगान समाचार को ही सुना जा सकता है। अफीम ही इनके पास अफगानी होने की पहचान है। यहां पर 300 से ज्यादा दिनों तक तो ठंड ही पड़ती है।

    लेकिन अब अफगान सरकार भी वाखान को मुख्य मार्गों से जोड़ने के लिए प्रयास कर रही है। अफगान अधिकारियों के मुताबिक, चीनी भी इस श्रेत्र के उत्तरी छोर पर सैन्य अड्डे बनाने में मदद करने के लिए काबुल के साथ बातचीत कर रहे है। आने वाले समय में यहां पर व्यापार, पर्यटन और चिकित्सा सेवा की उपलब्धता हो सकती है।