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    Lalit Modi & Sushmita Sen

    ललित मोदी-सुष्मिता सेन प्रसंग: बीते दिनों जब से आईपीएल के संस्थापक ललित मोदी और भारत की प्रथम मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन के प्रेम-संबंधों का मामला सोशल मीडिया में आया है, मानो समाज को एक ऐसा मसाला मिल गया है जिसके चटखारे हर कोई लेना चाह रहा है और किसी का जी नहीं भर रहा हो।

    क्या व्हाट्सएप, क्या ट्विटर, क्या फेसबुक, क्या इंस्टाग्राम.. हर जगह इस सम्बंध को लेकर अभद्र टिप्पणियों और चुटकुलों की मानो बाढ़ आ गई हो। मुख्य धारा की मीडिया जिसे चर्चा महँगाई, अर्थव्यवस्था, लोकतंत्र, GST का बढ़ता दायरा आदि पर चर्चा करनी चाहिए थी, वह भी ललित-सुष्मिता प्रकरण में शोध कर रहा है।

    यह सब एक बानगी है कि हमारा समाज प्रेम-प्रसंगों को लेकर कितना संकीर्ण है। एक तरफ़ देश की न्यायपालिका भारतीय दंड संहिता के धारा 497 के तहत Adultery (परपुरुषगमन/परस्त्रीगमन) को अपराध मानने से इनकार करते हुए इस सेक्शन 497 को असंवैधानिक बताती है। वहीं दूसरी तरफ हमारा समाज ललित मोदी-सुष्मिता सेन के रिश्ते को हजम करने में आज भी असमर्थ है।

    हम भूल जाते हैं कि यह वही सुष्मिता सेन हैं जिसने मिस यूनिवर्स बनने वाली प्रथम भारतीय का गौरव प्राप्त है और उन्होंने पूरे विश्व मे भारत के महिला-वर्ग का परचम लहराया है। बाजार-विशेषज्ञ बताते हैं कि सुष्मिता सेन का मिस यूनिवर्स चुना जाना भारतीय बाजार में कॉस्मेटिक्स वस्तुओं के हिस्सेदारी को कई गुना बढ़ा दिया था।

    “खूबसूरत औरत पैसे के पीछे भागती है?”

    ललित मोदी-सुष्मिता सेन प्रसंग
    Netizens became crazy after Lalit Modi reveals that he is dating Sushmita Sen (Image Source: The Print)

    भारत हर चीज में पश्चिम के देशों से अपनी तुलना करता है लेकिन जब बात ऐसे सम्बंधो की आती है तो हमारा समाज वही दकियानूसी विचारों के इर्द गिर्द घूमने लगता है। जैसे- “औरत पैसे के पीछे भागती है।” या फिर “सुष्मिता सेन को ललित मोदी से नहीं, उसके हीरों से प्यार है।” आदि-आदि….

    हम जब ऐसी कपोल-कल्पित बातें करते हैं तो हम भूल जाते हैं कि यह सुष्मिता सेन की मानसिकता है या नहीं, यह सुष्मिता सेन ही जाने लेकिन यह तय है कि हम खुद ऐसी दकियानूसी विचारों से कहीं ना कहीं सहमत है।

    यह सच है कि सुष्मिता-ललित उम्र के जिस दहलीज पर अपने प्रेम सम्बंध को दुनिया के आगे इजहार कर रहे हैं, उस उम्र में इंसान पैसे की कीमत ज्यादा समझता है। लेकिन यह हर जगह लागू होता हो, ऐसा नहीं है।

    मेरे विचार में सुष्मिता सेन के 100 करोड़ की संपत्ति ललित मोदी के 4000 करोड़ की संपत्ति के आगे काफी बड़ा है। ऐसा इसलिए क्योकि सुष्मिता सेन ने यह संपत्ति अपने मेहनत, अपने कला और बिना कोई धोखाधड़ी से कमाए हैं, जबकि ललित मोदी, 4000 करोड़ के मालिक होते हुए भी इस देश के लिए एक “घोषित भगौड़ा” है।

    चूँकि एक समाज के तौर पर हम किसी प्रेम सबंध को जिसमें धनाढ्यता की गुंजाइश हो, उसे प्यार के बजाए एक अवसरवादी रिश्ते के दृष्टिकोण से देखने के इतने आदि हैं कि हर ऐसे रिश्ते को दिल के झंकार के बजाए पैसों की खनक से प्रेरित मान लेते हैं।

    मोदी-सेन सम्बंधो को लेकर जो मीम या व्हाट्सएप फॉरवर्डेड आ रहे हैं, उन्हें पढ़कर यही लगता है कि इस समाज मे पुरूषों की सोच तो कम से कम यही है कि – “अगर पास में पैसा है तो हर खूबसूरत महिला पास में रहेगी।”

    महिलाओं से बात कर के लगा कि मोदी-सेन प्रसंग को लेकर वही रवैया है जो वे एक पड़ोसन से दूसरे पड़ोसन के बारे में कहती हैं – ” बहन, मैने तो पहले ही कहा था, यह औरत बहुत चालाक है।”

    कुछ लोग ऐसे भी मीम साझा कर रहे हैं, कि जो काम भारत सरकार न कर पाई, वह सुष्मिता सेन कर दी। (प्रसंग ललित मोदी को भारत वापस लाने को लेकर है।) अब ये भारत सरकार की अकुशलता या विफलता दर्शाता है या फिर औरत की खूबसूरती की मायाजाल को लेकर दकियानूसी विचार है- यह आप तय करें।

    कुल मिलाकर, हम एक प्रेम संबंध को अपने घर-परिवार से लेकर बॉलीवुड तक नहीं बर्दाश्त कर पा रहे हैं। अब हम ललित मोदी या सुष्मिता सेन को जाति-समाज से अलग तो कर नहीं सकते तो इतना तो कर ही सकते हैं कि उनके प्रेम संबंध का मजाक उढ़ायें या मीम बनाकर लोगों में बांटे।

    इस तमाम मीम या व्हाट्सएप फॉरवर्डेड का सार यही है कि “महिला पैसे के पीछे भागती है।” ऐसा कहने वाले लोग रोजमर्रा की जिंदगी में भी मिल जाते हैं।  यह अलग बात है कि उनसे स्प्ष्ट तौर पर सवाल करें कि क्या आपकी बहु बेटियों के संस्कार भी यही हैं तो टाल मटोल कर यह साबित करने लगते हैं कि दूसरे लोग ऐसा सोचते हैं कि औरत पैसा के पीछे भागती है, वे खुद नहीं।

    असल मे यह सोच हमारे सामाजिक कुंठा का प्रतीक है। हमने ही यानि पुरुषवादी समाज ने ही यह आयाम बनाएं और आज उसी से शिकायत है।इतिहास गवाह है कि औरतें उपभोग की वस्तु समझी गयी।

    पहले जब कोई राजा जंग जीते तो हारने वाले राजा को सजा उसकी रानी से विवाह कर के देता था। भगवान जाने यह कौन सी सजा थी कि युद्ध लड़ा राजाओं ने, जीत एक राजा को मिली, हार दूसरे राजा को मिली लेकिन सजा किसको मिली तो रानी को।

    वैवाहिक संबंध राजाओं द्वारा जमींन हड़पने, राज्यो पर नियंत्रण स्थापित करने, दान संपदा हासिल करने का तरीका रहा है। लिच्छवी से लेकर मगध से लेकर वाकाटक राजवंश… तमाम ऐसे उदाहरणों से हमारा इतिहास पटा पड़ा है।

    एक राजा की 100 रानियां होती थीं। एक औरत के दिल से सोचिए, क्या आप क्या चुनेंगे- तमाम संपत्ति के बीच एक राजा जिसकी आपके अलावे बहुतेरे और रानियां हों या एक साधारण चरित्रवान पुरूष?

    राजशाही की बात अगर पुरानी लगे तो आज 21वीं सदी के भारत की ही बात करें। दहेज आज भी हमारे समाज की एक कुप्रथा है जिसे समाज के हर वर्ग मे मूक समर्थन हासिल है।

    दहेज मेरी नजर में एक औरत को पति के साथ रहने के लिए उसके पिता द्वारा चुकाया गया रकम है। या दूसरे शब्दों में कहें तो पिता द्वारा यह रकम इसलिए दी जाती है कि लड़की वापस आकर अपने भाइयों की जमीन में अपना हिस्सा ना तलाशे।

    अब बेचारी मायके वापस आ नहीं सकती, पति का घर यानि ससुराल में वह खुद को स्थापित कर पायेगी या नही, इसकी गारंटी नहीं है तो ऐसे में पैसे के अलावे क्या विकल्प हैं उसके पास? इसलिए जब हम यह कहते हैं कि सुष्मिता सेन हीरे के पीछे भागी या ललित मोदी के सम्पत्ति के पीछे तो हमें उसी वक़्त अपने समाज के कालिखों का अंदाजा होना चाहिए।

    दूसरी बात कि इस सम्बंध को लेकर ये जो हॉट मीम या तमाम चटखारे जो फैलाये जा रहे हैं, यह दर्शाता है कि हम एक समाज के तौर पर खुलेपन को लेकर आज भी दुनिया से 2 कदम पीछे हैं।

    सोच कर देखिये, सुष्मिता सेन या ललित मोदी जैसे बड़े नामी गिरामी लोगों को भी समाज के आगे सफाई देनी पड़ रही है जबकि यह सब आम बात है बॉलीवुड के लोगों के लिए।

    क्या होता होगा उन आम प्रेमीयुगल का जो इस समाज मे रहकर समाज के तानों का शिकार होते होंगे? जिनके माता पिता तक ने संबंध तोड़ लिया होगा महज इसलिए कि उन्होंने प्यार को चुना है?

    हम कब समझेंगे कि प्यार कलंक या मजे लेने का विषय नहीं है; प्यार एक शोध है… प्यार स्वच्छन्द समाज का परिचायक है..प्यार नयापन की सोंधी खुशबू है.. प्यार समाज के प्रगति का द्योतक है… चटखारे लेने की चीज नहीं है।

    इसमें मीडिया का किरदार अतिमहत्वपूर्ण है। हर समय विराट-अनुष्का (विरुष्का) या रणवीर-आलिया जैसा ही प्यार हो तो ही उसे समर्थन हो, ऐसा नहीं हो सकता। कोई ललित मोदी और सुष्मिता सेन अगर जोड़ी बनाये तो इसे भी प्यार ही कहा जाए, हीरे और पैसे का सौदा नहीं।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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