सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार को राजनीतिक पार्टियों द्वारा “पब्लिक फण्ड से मुफ्त बाँटने की घोषणा” से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन वी रमन्ना, जस्टिस ए.एस.बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि इस याचिका ने एक गंभीर समस्या को उठाया है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ” यह एक गंभीर समस्या है और मुफ़्त सुविधाओं को बाँटने की घोषणा को पूरा करने वाला बजट साधारण बजट से बाहर चला जाता है। यद्यपि कि यह कोई भ्रष्टाचार के दायरे में नहीं है लेकिन यह एक विषम माहौल को उत्पन्न करता है।”
बीजेपी नेता ने डाली है यह याचिका
याचिकाकर्ता बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम-कोर्ट से केंद्र सरकार को इस समस्या से संबंध में कानून बनाने को भी दिशा-निर्देश देने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा…
तीन जजों के बेंच ने ध्यान दिलाया कि याचिकाकर्ता ने कैसे चुन चुनकर कुछ ही पार्टियों और कुछ ही राज्य के बारे में याचिका में लिखा है।
CJI ने कहा कि “आपने अपने याचिका में सिर्फ 2 ही पार्टी और राज्य के बारे में लिखा है।”
जस्टिस कोहली ने भी याचिकाकर्ता के अप्रोच को सेलेक्टिव बताया।
फिर भी कोर्ट ने इस याचिका को एक गंभीर मुद्दे से जुड़ा हुआ बताया और सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करते हुए कहा कि ऐसी पार्टियां जो चुनाव के पहले जनता में मुफ्त की चीजें बाँटने की घोषणा करते हैं, उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाए।
इस याचिका के कुछ मुख्य बिंदु..
याचिकाकर्ता ने अपने याचिका में जिक्र किया कि-
1. आम आदमी पार्टी ने पंजाब चुनावों के मद्देनजर घोषणा की है कि अगर पंजाब में AAP की सरकार बनती है तो 18 वर्ष से ऊपर की हर महिला को 1000 ₹ की धनराशि प्रतिमाह देगी।
2. शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने 2000₹ की धनराशि प्रतिमाह हर महिला को देने की घोषणा की है।
3. इसके बाद कांग्रेस ने न सिर्फ 2000₹ प्रतिमाह और 8 गैस सिलिंडर प्रति वर्ष प्रति घरेलू महिला देने का वादा किया है बल्कि इसके साथ कॉलेज जाने वाली हर लड़की को 1 स्कूटी, बारहवीं पास करने वाली हर लड़की को 20,000₹/-, दसवीं के।लिए 15,000₹/-, आठवीं के लिए 10,000₹/- और पांचवीं के लिए 5000₹/- देने की घोषणा की है।
4. यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कक्षा 12 में पढ़ने वाली हर लड़की को एक स्मार्टफोन, स्नातक करने वाली हर लड़की को स्कूटी, महिलाओं के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट में मुफ्त यात्रा, साल में 8 गैस सिलेंडर हर घरेलू महिला को और 10 लाख तक का फ्री मेडिकल ट्रीटमेंट हर परिवार को।दिया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने कहा कि जनता के पैसे से मुफ्त का बंटवारा अपने चरम पर है। साथ ही याचिकाकर्ता ने मांग की- “कोर्ट, निर्वाचन आयोग को एक दिशानिर्देश दे कि चुनाव चिन्ह ऑर्डर 1968 के पारा 6A, 6B और 6C में परिवर्तन कर के यह जोड़ा जाए कि राजनीतिक दलों को अतार्किक तौर पर मुफ्त की बाँटने की घोषणा नहीं करना चाहिए।”
कितना गंभीर है ये मामला…
भारत मे सामाजिक और आर्थिक असमानता एक गंभीर समस्या है। गरीबी और कर्ज यहाँ आम-जनों के रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न अंग है। ऐसे में ये लोक-लुभावन वादे जनता को रिझाने के लिए अमूमन हर पार्टी द्वारा हर चुनाव में इस्तेमाल होता है।
लेकिन जब कोई पार्टी सरकार में आती है तो उसे जनता से किये वादे को पूरा करना होता है। ऐसे में मुफ़्त में दी जाने वाली घोषणाएं राज्य की बजट के लिए असंतुलन पैदा करते हैं।
भारत के कई राज्य ऐसे है जिन पर कर्ज का बोझ लगभग 3 लाख रुपये प्रति व्यक्ति से भी ज्यादा है। ऐसे में मुफ्त की स्कूटी स्मार्टफोन इत्यादि जैसे वादों को पूरा करना निश्चित ही राजकोषीय संतुलन को जबरदस्त तरीके से प्रभावित करेगा।
कोविड19 के महामारी के बाद अमीर और गरीब के बीच की खाई और बढ़ गई है। वित्तीय प्रबंधन आम जनता के साथ साथ सरकारों के लिए भी एक चुनौती बन गई है।
राजनीतिक पार्टियों को मुफ़्त वाली घोषणाओं को करने के पहले कई बार सोचना चाहिए। लोकतंत्र में किसी भी कीमत पर वोट हासिल करना, सिर्फ यही मक़सद ना बन जाये इसके लिए चुनाव आयोग को भी कड़ा रुख अख्तियार करना होगा।
अब अगली सुनवाई कब होगी…
चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों को दंतविहीन बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 4 हफ़्तों के बाद करने की घोषणा की है। उम्मीद है इस मामले से जुड़े सभी पक्ष अगली सुनवाई में समाधान के तरफ बढ़ने की कोशिश करेंगे।