भारत सरकार ने तालिबान पर अपना रुख नरम करने के संकेत देते हुए विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि कतर में उसके राजदूत दीपक मित्तल ने मंगलवार को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात की।
माना जाता है कि भारतीय सुरक्षा अधिकारी और राजनयिक कई महीनों तक तालिबान प्रतिनिधियों के साथ जुड़े रहे हैं लेकिन यह पहली बार है कि सरकार ने सार्वजनिक रूप से ऐसी बैठक को स्वीकार किया है। मंत्रालय ने कहा कि यह बैठक तालिबान के अनुरोध पर हुई है। अधिकारियों ने बताया कि इस बैठक का अनुरोध इसलिए आया क्योंकि तालिबान के नेता कुछ “स्वीकार्यता” प्राप्त करने के इच्छुक हैं।
मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि, “यह चर्चा अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा, सुरक्षा और शीघ्र वापसी पर केंद्रित थी। अफगान नागरिकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, जो भारत आना चाहते हैं उनको लेकर भी चर्चा हुई। भारतीय राजनयिक मित्तल ने कहा कि भारत की चिंता यह थी कि “अफगानिस्तान की धरती का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए और किसी भी तरह से आतंकवाद को बढ़ावा नहीं चाहिए।”
लगभग 140 भारतीय और सिख अल्पसंख्यक के सदस्य अभी भी काबुल में हैं और उन्हें वापस लाने की आवश्यकता है। भारत अब तक 112 अफगान नागरिकों सहित 565 लोगों को दिल्ली पहुंचा चुका है।
मंत्रालय के बयान के अनुसार तालिबान नेता ने भारतीय राजदूत को आश्वासन दिया कि सभी मुद्दों को “सकारात्मक रूप से संबोधित किया जाएगा।” देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण और स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई ने शनिवार को एक बयान दिया और भारत से अफगानिस्तान के साथ अपने राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों को जारी रखने का आह्वान किया।
विशेष रूप से भारत को हक्कानी समूह, जो तालिबान का एक हिस्सा है और तालिबान के उप नेता सिराजुद्दीन हक्कानी के बारे में चिंता है जो 2008-09 में भारतीय दूतावास पर हमलों के लिए जिम्मेदार थे। पिछले कुछ महीनों में मंत्रालय ने कहा था कि वह अफगानिस्तान में “विभिन्न हितधारकों” के संपर्क में थे और सूत्रों के अनुसार भारतीय अधिकारियों ने दोहा में तालिबान प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात की थी।