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    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि किसानों को विरोध करने का अधिकार है लेकिन आंदोलन को यातायात या सार्वजनिक आंदोलन में बाधा नहीं बननी चाहिए। न्यायमूर्ति एस.के. कौल ने कहा कि तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान-सरकार के गतिरोध को खत्म करने की ज़िम्मेदारी और समाधान सरकार के पास है।

    प्रदर्शनकारी किसान एक साल से अधिक समय से राजधानी के बाहरी इलाके में डेरा डाले हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों से जमीनी हालात का जायजा लेने को कहा है। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय वाली पीठ नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    याचिकाकर्ता ने शिकायत की है कि दिल्ली और नोएडा के बीच आना-जाना किसानों के विरोध के चलते सड़क जाम के कारण दुःस्वप्न बन गया है। उनके अनुसार “इसका समाधान केंद्र और राज्यों के हाथों में है। यदि विरोध प्रदर्शन जारी है, तो किसी भी तरह से यातायात को नहीं रोका जाना चाहि, ताकि लोगों को आने-जाने में परेशानी न हो।

    अदालत ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह अपने मुवक्किल से हस्तक्षेप करने के लिए कहें। हाल ही में एक हलफनामे में, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि उसने किसानों को यात्रियों को होने वाली असुविधा के बारे में बताया था। उसमे कहा था कि मुक्त सार्वजनिक आंदोलन को रोकना अवैध है। अदालत ने अगली सुनवाई 20 सितंबर को निर्धारित की है।

    बेंच ने अपने अप्रैल के आदेश में कहा कि, “उनका कहना है कि वह सिंगल पेरेंट हैं और उन्हें कुछ मेडिकल समस्याएं भी हैं और दिल्ली की यात्रा करना एक बुरा सपना बन गया है, जहां सामान्य 20 मिनट के बजाय दो घंटे लगते हैं। वह तर्क देती है कि इस न्यायालय द्वारा आने-जाने के मार्ग को [सड़कों] को साफ रखने के लिए विभिन्न निर्देशों के बावजूद, अभी भी ऐसा नहीं होता है। हमने उनके सामने रखा, अगर ऐसा है तो यह एक प्रशासनिक विफलता है क्योंकि न्यायिक दृष्टिकोण हमारे द्वारा पहले ही प्रतिपादित किया जा चुका है।”

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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