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    दिसंबर से भारत एक ऐसी प्रणाली की ओर बढ़ जाएगा जो एक सामान्य सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में बाघों और हाथियों दोनों की गिनती करेगी। बाघ सर्वेक्षण आमतौर पर चार साल में एक बार होता है और हाथियों की गिनती पांच साल में एक बार की जाती है। सबसे हालिया 2018-19 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 2,997 बाघ थे। 2017 में की गयी अंतिम गणना के अनुसार भारत में 29,964 हाथी थे।

    पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को विश्व हाथी दिवस के अवसर पर 2022 में अखिल भारतीय हाथी और बाघ जनसंख्या सर्वेक्षण में अपनाए जाने वाले जनसंख्या अनुमान प्रोटोकॉल को सार्वजनिक किया। एक बैठक में उन्होंने कहा कि जानवरों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए “भारत भर के विभिन्न राज्यों में अधिक वैज्ञानिक लाइनों के साथ जनसंख्या अनुमान विधियों में सुधार और सामंजस्य स्थापित करने की अत्यधिक आवश्यकता” थी।

    2006 से भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआईआई) देहरादून, जो पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध रखता है, के पास एक मानकीकृत प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग राज्य बाघों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए करते हैं। कैमरा ट्रैप और अप्रत्यक्ष आकलन विधियों के आधार पर बाघों की संख्या की गणना की जाती है।

    डब्लूआईआई में वन्यजीव वैज्ञानिक कमर कुरैशी ने कहा, हाथियों की संख्या की गिनती सीधे राज्यों पर निर्भर करती है। हाल के वर्षों में, हाथियों में जन्म दर और जनसंख्या प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने के लिए गोबर के नमूनों का विश्लेषण करने जैसी तकनीकों को भी लागू किया गया है।

    वन्यजीव वैज्ञानिक कमर कुरैशी ने बताया कि, “यह देखते हुए कि हाथियों और बाघों के कब्जे वाले क्षेत्र का 90% सामान्य है और एक बार आकलन के तरीके मानकीकृत हो जाते हैं, तो एक सामान्य सर्वेक्षण होने से लागत में काफी बचत हो सकती है। संकटग्रस्त प्रजातियों की अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) रेड लिस्ट में एशियाई हाथियों को “लुप्तप्राय” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। पर्यावरण मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि दुनिया की 60% से अधिक हाथी आबादी भारत में है।

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