अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने आखिरकार तुर्की के खिलाफ जाते हुए आर्मीनियाई नरसंहार को आधिकारिक मान्यता दे दी है। 20वीं सदी की शुरुआत में तुर्की के ओटोमन साम्राज्य ने लाखों आर्मेनियाई लोगों की व्यवस्थित तरीके से हत्या की थी। अभी तक अमेरिका के सभी पूर्व राष्ट्रपति नाटो सहयोगी तुर्की के नाराज होने के डर से इन अत्याचारों को नरसंहार बताने से बचते रहे हैं।
चुनावी मुद्दा था आर्मीनियाई नरसंहार
ब्लूमबर्ग न्यूज ने बताया कि जो बाइडन ने एर्दोगन को फोन पर बताया कि यह उनका चुनावी एजेंडा रहा है। इसलिए, अमेरिका अब इस नरसंहार को मान्यता देने जा रहा है। हालांकि, वाइट हाउस ने दोनों नेताओं की बातचीत के बाद जो बयान जारी किया है, उसमें इस समस्या का उल्लेख नहीं है। बाइडन के राष्ट्रपति बनने के तीन महीने बाद एर्दोगन के साथ पहली बार बातचीत को अमेरिका और तुर्की के बीच रिश्तों में कड़वाहट के रूप में देखा जा रहा है।
15 लाख लोगों की हत्या, लेकिन तुर्की ने नहीं मांगी माफी
इतिहासकारों के मुताबिक ऑटोमन सेना ने 1915 में व्यवस्थित तरीके से 15 लाख से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी थी। हालांकि तुर्की ने हमेशा इस दावे को खारिज किया है और इस वजह से आर्मेनिया के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के आदेश पर लाखों यहूदियों की हत्या की दुनियाभर में आज भी चर्चा होती है। मगर पहले विश्व युद्ध के दौरान मारे गए आर्मेनियाई नागरिकों के बारे में बात नहीं होती। तुर्की ने कभी इसे लेकर माफी नहीं मांगी है। उलटे उसने अजरबैजान के साथ आर्मेनिया की जंग के दौरान अजरबैजान का साथ दिया था।
ट्रम्प और एर्दोगन के रिश्ते
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन का डोनाल्ड ट्रंप के साथ अच्छी दोस्ती थी। यही कारण है कि नाटो का सदस्य होने के बाद भी रूस से हथियार खरीदने पर अमेरिका ने कोई कड़ा प्रतिबंध नहीं लगाया। ट्रंप ने शुरुआत में तो यूएस कांग्रेस के कई प्रस्तावों को रोक दिया, लेकिन जब बाद में दबाव बढ़ने लगा तो उन्होंने तुर्की के ऊपर मामूली प्रतिबंध ही लगाए। अपने व्यक्तिगत संबंधों से ही एर्दोगन ने ट्रंप को सीरिया के कुर्द क्षेत्रों से अमेरिकी सैनिकों को वापस लेने के लिए मनाया था ताकि तुर्की उन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर सके। ट्रंप ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में पेंटागन या अमेरिकी सहयोगियों से सलाह किए बिना ही यह निर्णय लिया था। जबकि इसमें ब्रिटेन, फ्रांस और कुर्द लड़ाके भी शामिल थे।
तुर्की ने अमेरिकी राजदूत को किया तलब
बाइडन के ऐलान से गुस्साए तुर्की के विदेश मंत्रालय ने अंकारा में अमेरिकी राजदूत डेविड सैटरफील्ड को तलब कर लिया। तुर्की के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि उप विदेश मंत्री सेदात ओनल ने अमेरिकी राजदूत डेविड सटरफील्ड को बताया कि आर्मीनियाई नरसंहार को मान्यता देने के लिए जो बाइडन के पास कोई कानूनी आधार नहीं था। इससे संबंधों को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी भरपाई करना कठिन हो गया है।