राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को औपचारिक रूप से न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना को देश के 48वें मुख्य न्यायधीश के तौर पर नियुक्त किया। देश के 47वें मुख्य न्यायधीश शरद बोबडे 23 अप्रैल को सेवनृवित्त होंगे। अतः एन वी रमन्ना 24 अप्रैल को मुख्य न्यायधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे। 24 मार्च को वर्तमान मुख्य न्यायधीश बोबड़े ने उनके नाम की सिफारिश सरकार को भेजी थी। परंपरा के मुताबिक, जस्टिस बोबडे ने विधि और न्याय मंत्रालय को चिट्ठी लिखी।
अधिसूचना के मुताबिक, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, जस्टिस नूतलपति वेंकट रमना को 24 अप्रैल 2021 से भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करते हैं।’
कौन हैं न्यायधीश एन वी रमन्ना?
न्यायमूर्ति रमन्ना ने फरवरी 1983 में वकालत शुरू की थी। उन्होंने विभिन्न सरकारी संगठनों के लिए पैनल काउंसल के रूप में भी काम किया है। वह केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील और हैदराबाद में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में रेलवे के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल के रूप में भी कार्य किया है।
27 जून 2000 को जस्टिस रमन्ना आंध प्रदेश हाईकोर्ट के स्थायी न्यायधीश के तौर पर नियुक्त हुए। वह दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी थे। एन वी रमन्ना ने आंध्र प्रदेश, मध्य और आंध्र प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, श्रम, सेवा और चुनाव मामलों में उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस की है। उन्हें संवैधानिक, आपराधिक, सेवा और अंतर-राज्यीय नदी कानूनों में विशेषज्ञता हासिल है।
17 फरवरी 2014 को न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना सुप्रीम कोर्ट के जज बने। अभी वह मुख्य न्यायधीश बोबडे के बाद सुप्रीम कोर्ट के दुसरे वरिष्ठतम जस्टिस हैं। न्यायधीश एन वी रमन्ना 26 अगस्त, 2022 को सेवानिवृत्त होंगे।
कुछ अहम फ़ैसले
पिछले कुछ सालों में जस्टिस रमन्ना का सबसे चर्चित फैसला जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की बहाली का रहा है। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल जनवरी में फैसला दिया था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है और जम्मू कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायधीश के कार्यालय को सूचना अधिकार कानून (आर टी आई) के दायरे में लाने का फैसला देने वाली बेंच के भी न्यायमूर्ति रमना सदस्य रह चुके हैं। जस्टिस रमना की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने से पिछले साल मार्च में इनकार कर दिया था।
नवंबर 2019 के फैसले में शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ‘जनहित’ में सूचनाओं को उजागर करते हुए ‘न्यायिक स्वतंत्रता को भी दिमाग में रखना होगा।’ वह शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे हैं जिसने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था। साथ ही नवंबर 2019 में उनकी अगुवाई वाली पीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को सदन में बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था।