Sat. Nov 23rd, 2024

    मुंबई हाई कोर्ट इन दिनों अपने अजीबोगरीब फैसलों के चलते सुर्खियों में है। मुंबई हाई कोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने पोक्सो एक्ट के तहत एक शक्स को बेहद अजीबोगरीब किस्म की दलील के साथ बरी कर दिया है। दरअसल पोक्सो एक्ट के तहत इस केस में एक 50 वर्षीय शख्स आरोपी था, जिसके साथ एक छोटी नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के प्रयास का मामला दर्ज था। इस केस की पोक्सो एक्ट के तहत सुनवाई की गई। सुनवाई में उस 50 वर्षीय शख्स को पोक्सो एक्ट के तहत सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया गया। साथ ही उसे सिर्फ आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी माना गया है।

    इस फैसले में जस्टिस पुष्पा ने कहा कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना उसके साथ दुराचार की श्रेणी में नहीं आता। साथ ही यदि स्किन टू स्किन कांटेक्ट नहीं होता और अपराधी उस बच्चे के स्तनों को छूता है तो उसे यौन हमला नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट ने इस मामले को यौन हमले की श्रेणी देने से इनकार किया और इनकार का आधार सिर्फ यही था कि आरोपी ने उस बच्ची को स्किन टू स्किन नहीं छुआ था। साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि आरोपी की पेंट की जिप खुली होती है तो इसे भी यौन हमला नहीं माना जाएगा। हालांकि इसे आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध माना गया है और इसके लिए अधिकतम 3 साल की सजा आरोपी को दी जाएगी।

    आरोपी शख्स पर पहले पोक्सो एक्ट की धारा 10 के आधार पर 5 वर्ष की सजा वह ₹25000 के जुर्माने का प्रावधान था, लेकिन जिस लड़की के साथ यह घटना हुई उसकी मां की दोबारा अपील करने पर इस केस में दोबारा सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट ने इसे यौन अपराध न मानकर आईपीसी की धारा 354 ए के अंतर्गत माना और पोक्सो एक्ट की धाराओं को रद्द कर दिया। इस मामले में कोर्ट का कहना है कि यौन अपराध की श्रेणी में आने के लिए प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क होना आवश्यक है।

    कोर्ट के इस फैसले के बाद लोगों में इसके प्रति रोष देखा जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि इस तरह के फैसले अपराधियों के हौसले को और बुलंद कर सकते हैं। इस तरह एक अपराधी की मानसिकता यह होगी कि वह एक नाबालिग बच्चे को गलत मंशा से छू सकता है। सिर्फ उसे इतनी सावधानी रखनी है कि स्किन टू स्किन कांटेक्ट ना हो।

    इस तरह के फैसले समाज के लिए घातक हैं। इस घटना के बाद कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कॉलेजियम सिस्टम के तहत होता यह है कि तीन जजों की बेंच मिलकर किसी एक शख्स को नियुक्त करती है। और यदि तीनों लोग उस पर सहमत हो जाए तो उस व्यक्ति को न्यायपालिका में आने का अधिकार प्राप्त होता है। यह भी न्याय पालिका में नेपोटिज्म का एक प्रकार माना जाता है। अतः इस तरह के सिस्टम का हमारी न्यायपालिका से खत्म होना बेहद आवश्यक है। कोर्ट के फैसले के बाद पोक्सो एक्ट को भी संशोधित करने की बातें सामने आ रही हैं। हमारे कानूनों में निश्चित ही बहुत सारी कमियां हैं जिनका जल्द ही समाधान होना आवश्यक है।

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