किसान आंदोलन के खत्म होने के आसार बनते नहीं दिख रहे हैं। किसानों और सरकार के बीच 4 जनवरी को हुई वार्ता में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है। कयास लगाये जा रहे थे कि इस बैठक में कुछ ना कुछ हल जरूर निकलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बीते डेढ़ महीने से किसानों ने दिल्ली के सभी प्रमुख बॉर्डरों पर धरना दिया हुआ है।
साथ ही रोज बनते बिगड़ते मौसम की मार झेलते हुए भी किसान अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। इसी बीच बहुत से किसानों की अलग-अलग कारणों के चलते मौत हो गई है। 4 जनवरी को ही गुरचरण सिंह नाम के 67 वर्षीय किसान की ठंड लगने व तबीयत बिगड़ने के कारण मौत हो गई। किसान नेताओं का कहना है कि कानून जब तक निरस्त नहीं होता तब तक विरोध प्रदर्शन वापस नहीं होगा। किसानों ने कहा है कि सरकार ने यदि शीघ्र ही बात नहीं मानी तो लोहड़ी वाले दिन किसान कानून की प्रतियों को लोहड़ी में जला दिया जाएगा।
ठंड का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। वृद्ध किसानों और कमजोर लोगों की ठंड के चलते तबीयत खराब हो रही है। ऐसे में बहुत से किसान आंदोलन स्थल पर अपने लिए पक्के मकानों तक का निर्माण करने में भी लग गए हैं। ऐसे प्रयासों से यह जाहिर होता लग रहा है कि आंदोलन अभी और लंबा चलेगा और जल्द ही इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलने वाला।
किसानों का रवैया सरकार के प्रति काफी रुखा लग रहा है। पिछली बैठक में भी किसानों ने ऐलान किया था कि वे इस आंदोलन को और उग्र करेंगे और कानून वापसी तक वही धरना स्थल पर बैठे रहेंगे। अनुमान है कि 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर रैली निकाल कर भी सरकार का विरोध कर सकते हैं। वहीं सरकार का कहना है कि वो किसानों के हितों पर ही फैसला लेगी लेकिन इसके लिए किसानों का सरकार के साथ सहयोग करना जरूरी है।