देश में बुंदेलखंड की पहचान समस्याग्रस्त इलाके की बन चुकी है, सारी समस्याओं की जड़ ‘पानी’ है। यही कारण है कि इस इलाके में जलसंकट के निदान के लिए कई अभियान चले, मगर तस्वीर नहीं बदली। अब यहां समुदाय को इस अभियान से जोड़ने के लिए कठपुतली का सहारा लिया जा रहा है और उन्हें पानी की कहानी सुनाई जा रही है।
टीकमगढ़ जिले की एक नदी है, उर नदी। यह नदी साल में कुछ माह ही प्रवाहमान रहती है और मार्च का महीना आने तक इसका पानी सूख चला होता है और अप्रैल गुजरते तक वह सूखे मैदान की तरह नजर आने लगती है। इस नदी का उद्गम-स्थल सुधा सागर है और यह लगभग 87 किलोमीटर का रास्ता तय करते हुए धसान नदी में मिलती है।
राज्य सरकार ने प्रदेश की 35 नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान छेड़ा है, उनमें से एक है उर नदी। इस नदी को प्रवाहमान बनाकर इसके तट पर बसे गांव की लगभग 85 हजार हेक्टेयर खेती की जमीन को सिंचित बनाना है। उसी दिशा में प्रशासन और गैर सरकारी संगठन अपने-अपने स्तर पर अभियान चलाए हुए हैं।
सार्थक संस्था टीकमगढ़ के निदेशक मनोज बाबू चौबे का कहना है कि चाहे जितने अभियान चलाए जाएं, जब तक समुदाय की हिस्सेदारी नहीं होगी, तब तक पानी का संरक्षण नहीं किया जा सकता। पानी की उपलब्धता रहे, जल संरचनाएं पानीदार हों, इसके लिए ग्राम, पंचायती संस्थाएं, नागर समाज, वित्तीय संसाधन और सरकार की हिस्सेदारी जरूरी है और इसके बीच समुदाय है। इसी भाव को लेकर उर नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान शुरू किया गया है।
वे आगे बताते हैं कि समुदाय की जल संरक्षण में हिस्सेदारी बढ़े, इसी को ध्यान में रखकर जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए कठपुतली के जरिए नाटक ‘जल गुल्लक’ का मंचन किया जा रहा है। गांव वालों को बताया जा रहा है कि वे पानी को ठीक पैसे की तरह गुल्लक में रखें, जो जरूरत पर काम आएगा। इसके लिए तालाब बनाएं, कुओं की जलग्रहण क्षमता बढ़ाएं और अन्य जल संरचनाएं विकसित करें।
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बुजुर्ग चिरई यादव ने बताया कि इस नाटक को देखने से उन्हें पता चला कि बारिश के पानी को रोका जा सकता है, और वही पानी गर्मी के मौसम में काम आएगा। पानी होगा तो पैदावार होगी और अन्य जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा।
जसवंत नगर के सरजू कहते हैं कि पानी बरसता है और बह जाता है। हर साल हमें संकट से गुजरना होता है। कठपुतली के नाटक से मनोरंजन हुआ और यह भी पता चला कि पानी को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। यह भी बताया गया कि गड्ढे बनाएं, बंधान बनाएं और पानी को रोकें।
कटेरा गांव के मुन्ना लाल लोधी का कहना है कि जागृति के अभाव में लोग बहुत सी बात नहीं जानते, मगर कठपुतली के नाटक ने बताया है कि जिस तरह गुल्लक में पैसे डालते हैं और जरूरत पर निकाल लेते हैं, उसी तरह बांध बनाकर पानी को इकट्ठा कर सकते हैं और जब जरूरत हो तो उसका उपयोग कर सकते हैं। पानी का संग्रहण एक तरफ जहां समस्या से मुक्ति दिलाएगा, वहीं जानवरों को पर्याप्त पानी मिलेगा और हरियाली आएगी।
बुंदेलखंड मध्यप्रदेश के सात और उत्तर प्रदेश के सात जिलों को मिलाकर बनता है। यहां के लगभग हर हिस्से की एक ही कहानी है, यहां पानी का संकट साल में पांच से छह माह तक रहता है। जलस्रोतों के सूखने से लोगों को पलायन करना होता है और पानी के इंतजाम में उनका आधा दिन ही गुजर जाता है।