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    नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में 20 दिसंबर को लखनऊ से गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ता रॉबिन वर्मा को मंगलवार को जेल से रिहा कर दिया गया। उन्हें पिछले हफ्ते जमानत मिली थी। जेल से रिहा होने के बाद वर्मा ने कहा कि पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेने के बाद बार-बार पूछा, “आप एक हिंदू हैं, फिर आपकी दोस्ती मुसलमानों के साथ क्यों है?”

    वर्मा ने आरोप लगाया कि उन्हें पुलिसकर्मियों द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित और अपमानित किया गया। इसके साथ ही पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी कि उनकी पत्नी और नाबालिग बेटी के साथ भी ऐसा ही किया जाएगा।

    वर्मा ने बताया कि पुलिस ने उनके मोबाइल फोन की जांच की और उनके फोन व व्हाट्सएप सूची में कई मुस्लिमों के नंबर पाए जाने पर उन्हें फटकार लगाई।

    पुलिस ने कथित तौर पर वर्मा से पूछा, “आप उनके (मुस्लिमों) साथ कहां जाते हैं और आपके इतने सारे मुसलमान दोस्त क्यों हैं?”

    उन्होंने दावा किया कि पुलिसकर्मियों ने उनकी पत्नी के लिए भी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया।

    पुलिस ने वर्मा को 20 दिसंबर को एक राष्ट्रीय दैनिक के पत्रकार के साथ हिरासत में लिया था, जब वे हजरतगंज इलाके में एक रेस्तरां में भोजन कर रहे थे।

    इसके बाद कार्यकर्ता को हजरतगंज पुलिस थाने और फिर सुल्तानगंज स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्हें कथित तौर पर थप्पड़ और घूंसे मारे गए और उन्हें चमड़े की बेल्ट से भी पीटा गया।

    वर्मा ने कहा कि उन्हें पुलिसकर्मियों ने बिना वर्दी के पीटा। उन्होंने कहा कि उन्हें थाने में हिरासत के दौरान कंबल, भोजन और पानी से वंचित रखा गया।

    अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार करते हुए वर्मा ने कहा कि वह किसी भी हिंसा का हिस्सा नहीं थे, और उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताया था।

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