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    छत्तीससगढ़ में नक्सली हिंसा की घटनाओं में बीते साल आई कमी भले ही सुरक्षा बलों के साथ सरकार के लिए राहत भरी है, मगर अब जो खबरें आ रही हैं वे चिंताजनक हैं। नक्सली एक तरफ जहां वसूली पर उतर आए हैं, वहीं संगठन को मजबूत करने और अपना संख्या बल बढ़ाने के लिए हर परिवार से एक सदस्य की मांग कर रहे हैं।

    छत्तीसगढ़ के 14 जिले सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, बस्तर, कोंडागांव, कांकेर, नारायणपुर, राजनांदगांव, बालोद, धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद, बलरामपुर और कबीरधाम नक्सल समस्या से प्रभावित हैं। पिछले साल पुलिस बलों की सक्रियता के चलते नक्सली गतिविधियों में कमी आई, मगर नक्सली फंड जुटाने और सदस्यों की संख्या बढ़ाने की कोशिश में अब भी लगे हुए हैं।

    नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि पुलिस की बढ़ी सक्रियता से बस्तर क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों में कमी आई है, मगर सुदूर क्षेत्रों में अब भी नक्सली अपनी पैठ बनाए हुए हैं और तेंदूपत्ता कारोबारी, बस संचालक व दुकानदारों से रंगदारी वसूलते हैं। अब नक्सलियों ने गांव वालों से भी चंदा वसूली का अभियान शुरू कर दिया है।

    सूत्रों के अनुसार, ग्रामीण परिवार की आर्थिक स्थिति के मुताबिक मासिक तौर पर वसूली जाने वाली राशि बढ़ भी जाती है। जिन परिवारों की ज्यादा खेती अथवा ट्रैक्टर आदि है, उनसे 100 से 200 रुपये मासिक तक का चंदा लिया जाता है। वहीं मुठभेड़ों में नक्सलियों के मारे जाने और समर्पण किए जाने के कारण संगठन की लगातार ताकत कमजोर होती जा रही है। इस बात से नक्सली नेता भी चिंतित हैं और वे संख्या में वृद्धि के लिए प्रयासरत हैं। इसी के चलते हर परिवार से एक सदस्य देने का दबाव बनाया जा रहा है।

    इन नक्सलियों ने ग्रामीण इलाके के लगभग हर हिस्से में प्रति परिवार से 50 रुपये मासिक वसूली का अभियान छेड़ दिया है, साथ ही वे गांव वालों पर संगठन में शामिल होने के लिए हर परिवार से एक सदस्य को देने का दबाव बना रहे हैं।

    बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने आईएएनएस को बताया, “फंड जुटाने की बात कोई नई नहीं है। नक्सली अपने फंड को बढ़ाने के लिए वषरें से गांव वालों के अलावा निर्माण करने वाली एजेंसी, उनके ठेकदार और कर्मचारियों से वसूली करते आ रहे हैं, अब भी उसी तरीके से पैसा जुटाने का काम रहे हैं। सुरक्षा बलों की सक्रियता से नक्सलियों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है।”

    सुंदरराज के अनुसार, “सुरक्षा बलों के लगातार शिविर बढ़ रहे हैं, जिसके चलते नक्सलियों का प्रभाव कम हो रहा है। आगामी दिनों में उन क्षेत्रों में भी सुरक्षा बलों की सक्रियता बढ़ेगी जहां नक्सली सक्रिय रहते हैं, साथ ही नक्सलियों द्वारा वसूली आदि की शिकायतें आ रही हैं।”

    बीते दो सालों की नक्सली घटनाओं पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि बीते साल नक्सली घटनाएं वर्ष 2018 की तुलना में कम हुई हैं। वर्ष 2018 में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ कम हुईं। आम आदमी की जानें कम गईं। इसके अलावा सुरक्षा बलों के शहीद होने वाले जवानों की संख्या में भी कमी आई है। ये आंकड़े सरकार और सुरक्षा बलों के लिए सुखद हैं, मगर अब नई रणनीति पर काम कर रहे नक्सली फिर से समस्या बढ़ाने की तैयारी में हैं। इससे निपटने के लिए सुरक्षा बलों ने भी कवायद तेज कर दी है।

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