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    पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली ने मंगलवार को आर्मी एक्ट 1952 में संशोधन करने वाले तीन विधेयकों को पारित कर दिया। इन विधेयकों में सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों व ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन की सेवा अवधि में विस्तार और इससे संबद्ध अन्य मुद्दों से जुड़े प्रावधान किए गए हैं।

    पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान सेना (संशोधन विधेयक) 2020, पाकिस्तान वायुसेना (संशोधन विधेयक) 2020 और पाकिस्तान नौसेना (संशोधन विधेयक) 2020 पर सरकार और विपक्ष में सहमति बन गई और इन्हें सर्वसम्मति से पास किया गया।

    लेकिन, साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन विधेयकों के पारित होने से पहले धार्मिक राजनैतिक दल जमाते इस्लामी पाकिस्तान और जमीयते उलेमाए इस्लाम (फजल) के सांसदों ने सदन से बहिर्गमन किया और कहा कि यह ‘सेलेक्टेड सरकार’ है और सदन भी ‘फर्जी’ है।

    इन दलों के साथ सदन से बहिर्गमन करने वाले उत्तरी वजीरिस्तान के सांसद मोहसिन डावर ने एक ट्वीट में कहा कि उन लोगों ने सदन से बाहर निकलने से पहले विधेयकों के खिलाफ वोट दिया था।

    डावर ने ट्वीट में कहा, “संसद रबर स्टैंप की तरह काम कर रही है। स्पीकर ने असहमति जताने वालों को अपना पक्ष तक नहीं रखने दिया। यह पाकिस्तान के संसदीय इतिहास के काले दिनों में से एक है। इससे उबरने में लंबा वक्त लगेगा।”

    सदन में स्पीकर असद कैसर ने संशोधन विधेयकों के हर हिस्से को पढ़कर सुनाया और फिर इन्हें ध्वनिमत से पारित किया गया।

    इसके पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने सैन्य प्रमुखों के सेवा विस्तार की शक्ति प्रधानमंत्री को देने वाले इन विधेयकों में कुछ संशोधन सुझाए। लेकिन, रक्षा मंत्री परवेज खटक ने विपक्ष से अनुरोध किया कि ‘राष्ट्र के हित में और क्षेत्र की संवेदनशील स्थिति के मद्देनजर इन संशोधनों को वापस लेकर एकजुट राष्ट्र का संदेश दें।’ इसके बाद विपक्षी दल ने अपने सुझाए संशोधनों को वापस ले लिया। विपक्ष के इस कदम की सत्ता पक्ष ने जमकर प्रशंसा की।

    इन विधेयकों को संसद के ऊपरी सदन सीनेट में भी मंगलवार को पेश किया गया जहां से इसे सदन की रक्षा मामलों की स्थाई समिति के पास भेज दिया गया। सीनेट में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष की इन विधेयकों पर सहमति बन गई है और माना जा रहा है कि कल (बुधवार को) सीनेट भी इन्हें पास कर देगी।

    इन विधेयकों की जरूरत इस वजह से पड़ी क्योंकि देश के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सरकार को आदेश दिया है कि वह सेना प्रमुख के सेवा विस्तार व इससे जुड़े मामलों पर छह महीने के भीतर संसद में एक स्पष्ट कानून बनाए। अदालत ने इसी शर्त के साथ सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के लिए छह महीने का सेवा विस्तार मंजूर किया है।

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