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    झारखंड चुनाव के नतीजों का देश के अन्य हिस्सों की सियासत पर असर पड़ने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। राज्य में कांग्रेस की सत्ता है, मगर अंदरखाने की खींचतान में बड़े बदलाव की संभावना बनने लगी है। क्योंकि राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य और राज्य के मंत्री उमंग सिंघार ने आदिवासियों के बीच झारखंड चुनाव में अहम भूमिका निभाई है। वह झारखंड में पार्टी के सह प्रभारी हैं।

    कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी कोर टीम के सदस्यों को लगभग दो-एक साल पहले ही झारखंड में सक्रिय कर दिया था। नेताओं को सक्रिय करते समय इस बात पर जोर दिया गया था कि कौन नेता किस क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखा सकता है। इसी के चलते मध्य प्रदेश के वन मंत्री उमंग सिंघार की झारखंड में तैनाती की गई थी। सिंघार राज्य की पूर्व उप मुख्यमंत्री और आदिवासी नेता रहीं जमुना देवी के भतीजे हैं और उनकी आदिवासियों में पैठ भी है।

    कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सिंघार को मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्रों में ही सक्रिय रहने को कहा गया। महागठबंधन में जब सीटों को बंटवारा हुआ तो कांग्रेस के हिस्से 31 सीटें आईं और उनमें से 16 पर पार्टी को जीत मिली है। जिन 16 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है, उनमें छह आदिवासी बाहुल्य हैं। कांग्रेस आदिवासी बाहुल्य सात सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी। इस तरह कांग्रेस का आदिवासी इलाकों में प्रदर्शन अपेक्षा से कहीं बेहतर रहा है।

    झारखंड में महागठबंधन को मिली सफलता और आदिवासी सीटों पर जीत हासिल करने के सवाल पर सिंघार कहते हैं, “मध्य प्रदेश सरकार ने आदिवासियों के लिए अनेक योजनाएं अमल में लाई हैं। वहीं झारखंड का आदिवासी अपने को ठगा महसूस करता है। झारखंड के आदिवासियों को कांग्रेस की हितकारी नीतियों से अवगत कराया गया। जिसका उन पर असर हुआ और कांग्रेस को आदिवासी क्षेत्रों में ही नहीं, दूसरे क्षेत्रों में भी बड़ी सफलता मिली है।”

    सिंघार पिछले दिनों राज्य की सियासत में खासा चर्चा में रहे हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर खुलकर गंभीर आरोप लगाए थे। यह मामला हाईकमान तक गया था। उसके बाद चर्चा तो यहा तक थी कि सिंघार को मंत्रिमंडल से बाहर किया जा सकता है। मगर माना जा रहा है कि राहुल टीम का सदस्य होने और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का संरक्षण हासिल होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई।

    राजनीतिक विश्लेषक संतोष गौतम का कहना है, “सिंघार आक्रामक आदिवासी नेता के तौर पर राज्य में पहचान बनाए हुए हैं। उनकी बुआ जमुना देवी को अक्खड़ आदिवासी नेता माना जाता था। वह अपने स्वभाव के कारण पार्टी के भीतर भी नेताओं से टकराने में पीछे नहीं रहीं। इतना ही नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से उनका मोर्चा लेना हमेशा सुर्खियों में रहा। इस आक्रामक छवि का पहले बुआ और अब भतीजे को भी लाभ मिल रहा है। आने वाले दिन सिंघार के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।”

    मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास प्रदेशाध्यक्ष की भी बागडोर है। नया अध्यक्ष बनाए जाने की लंबे अरसे से कवायद जारी है। इस पद के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, वर्तमान मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, कमलेश्वर पटेल के साथ ही उमंग सिंघार के नामों की चर्चा जोरों पर है। नया अध्यक्ष चुनने में कमलनाथ और सिंधिया की अहम भूमिका रहने वाली है।

    राज्य में कांग्रेस के 114 विधायक हैं। इनमें अनुसूचित जनजाति के विधायकों की संख्या 37 है। इस स्थिति में कांग्रेस राज्य में पिछड़ा या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति वर्ग से नए अध्यक्ष का चयन कर सकती है। ऐसे में पिछड़ा वर्ग के कमलेश्वर पटेल के अलावा अनुसूचित जाति व जनजाति से सज्जन वर्मा और उमंग सिंघार का मजबूत दावा बनता है।

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