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    अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि हाल के वर्षों में भारत की उच्च विकास दर के बावजूद औपचारिक क्षेत्र के रोजगार में उस हिसाब से वृद्धि नहीं हुई। यानी आर्थिक वृद्धि दर और रोजगार वृद्धि दर में मेल नहीं है और श्रम बाजार की भागीदारी घटी है।

    आईएमएफ की रिपोर्ट भारत के साथ इसके वार्षिक परामर्श को लेकर सोमवार को वाशिंगटन में जारी की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व की एक सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ने जहां लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, वहीं हाल के श्रम बाजार के आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी बहुत ज्यादा है, और श्रम शक्ति की भागीदारी में गिरावट आई है, खास तौर से महिलाओं की।

    रिपोर्ट में चेताया गया है, “समावेशी और टिकाऊं विकास के बिना, भारत का संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश अगले कुछ दशकों में बर्बाद हो सकता है।”

    रिपोर्ट में खपत और निवेश में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि सुस्त होने की बात कही गई है।

    इसमें कहा गया है कि खाद्य कीमतों की अपेक्षाकृत कमी ने ‘ग्रामीण संकट’ में योगदान दिया है।

    भारत के लिए आईएमएफ मिशन के प्रमुख रानिल सालगाडो ने संवाददाताओं से कहा कि अन्य योगदान देने वाले कारकों में ‘गैर-बैंक वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के क्रेडिट विस्तार में अचानक आई कमी’ और संबंधित क्रेडिट शर्तो को कठोर बनाना शामिल हैं और कुछ मुद्दे उचित सुधार के क्रियान्वयन से जुड़े हैं, जैसे राष्ट्रव्यापी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)।”

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