नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट के पहले विस्तार को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। मई, 2014 में पहली बार सरकार बनने के छह महीने के भीतर नौ नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने पहला कैबिनेट विस्तार किया था, और अब 2019 में दूसरी बार सरकार बन जाने के छह माह बीत चुके हैं। ऐसे में भाजपा के अंदरखाने से लेकर सत्ता के गलियारे तक में इसे लेकर चर्चा चल रही है। विस्तार में जहां कुछ मंत्रालयों के मंत्री बदले जा सकते हैं, वहीं नए चेहरों को मौका मिल सकता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा के साथ सरकार बनाने के चलते शिवसेना केंद्र में राज्य मंत्री का एक पद छोड़ चुकी है। ऐसे में महाराष्ट्र के किसी पार्टी सांसद को मंत्री बनाया जा सकता है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा, “हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड की चुनावी व्यस्तताओं, और फिर कई महत्वपूर्ण विधेयकों को शीतकालीन सत्र में पास कराने में पार्टी नेतृत्व की ऊर्जा लगी रही। संभव है कि संसद सत्र और झारखंड चुनाव खत्म होने के बाद कैबिनेट विस्तार हो।”
सूत्रों के अनुसार, सहयोगी दलों की ओर से भाजपा पर मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दबाव है। बिहार में अगले साल 2020 में और तमिलनाडु में 2021 में विधानसभा चुनाव को देखते हुए जद(यू) और एआईएडीएमके के नेताओं को मोदी सरकार में जगह मिल सकती है। ये दोनों दल केंद्र में पर्याप्त हिस्सेदारी चाहते हैं। लोकसभा चुनाव से दोस्ती निभाने के साथ कई विधेयकों पर सरकार के साथ खड़ी रही एआईएडीएमके को इसका इनाम मिल सकता है।
सूत्रों का कहना है कि आर्थिक संकेतकों पर देश के कमजोर प्रदर्शन, जीडीपी वृद्धि दर गिरने और इसे लेकर सरकार के लगातार घिरने के कारण वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को हटाने की अटकलें तेज हो गई हैं।
सुरेश प्रभु को भी कैबिनेट में वापस लिया जा सकता है। नरेंद्र सिंह तोमर सहित कई मंत्रियों के पास एक से अधिक बड़े मंत्रालय हैं। ऐसे में फेरबदल हुआ तो इन मंत्रियों का भार कम किया जा सकता है।
30 मई, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुल 57 मंत्रियों के साथ शपथ ली थी, जिसमें 24 कैबिनेट, नौ राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार और 24 राज्यमंत्री शामिल थे। जबकि 2014 में उन्होंने इससे कम 45 मंत्रियों के साथ शपथ ली थी।
नियमानुसार, लोकसभा की कुल संख्या का अधिकतम 15 प्रतिशत मंत्री बनाए जा सकते हैं। इस प्रकार केंद्र सरकार में 81 मंत्रियों की संख्या हो सकती है। पिछले कार्यकाल में तीन बार हुए विस्तार के बाद मंत्रियों की संख्या 70 तक पहुंच गई थी। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री मोदी पिछली बार की तरह ही बड़ा मंत्रिमंडल रखना चाहेंगे तो अभी 13 और मंत्रियों की जगह बनती है।
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा, “वैसे पिछली बार की तुलना में इस बार ज्यादा मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने शपथ ली थी। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि मंत्रिमंडल विस्तार की कोई जल्दबाजी है। हां, इतना जरूर है कि सामाजिक, राजनीतिक और चुनावी समीकरणों को देखते हुए सहयोगियों को मौका दिया जा सकता है। पिछली बार 16 सांसद होने पर भी सिर्फ एक मंत्री पद ऑफर होने की वजह से नाराज जद(यू) ने ऐन वक्त पर सरकार में शामिल होने से इंकार कर दिया था। इस बार बात बन सकती है। वैसे भी आप आंकड़े देखें तो इस बार सहयोगी दलों से कम मंत्री बने हैं।”