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    उत्पादन गतिविधियों में सुस्ती के कारण देश की समग्र विकास दर (जीडीपी) सितंबर में समाप्त दूसरी तिमाही (क्यू2) में घटकर 4.5 फीसदी हो गई। इस तरह लगातार पांचवीं तिमाही में भी जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई है।

    शुक्रवार को जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई-सितंबर की अवधि में भारत की अर्थव्यवस्था छह साल से अधिक की धीमी गति से बढ़ी। देश के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत बढ़ी, जबकि पिछली तिमाही में यह 5 प्रतिशत और जुलाई-सितंबर 2018 में 7 प्रतिशत थी।

    वृद्धि दर क्रमिक आधार पर 2019-20 के पहली तिमाही के 5 फीसदी से कम हो गई, 2018-19 के चौथी तिमाही में 5.8 फीसदी ही और 2018-19 की तीसरी तिमाही में 6.6 फीसदी रही।

    जीडीपी के आंकड़े अर्थशास्त्रियों के अनुमान से भी बदतर थे। समाचार एजेंसी रॉयटर्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, अर्थशास्त्रियों ने जुलाई-सितंबर में जीडीपी की वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद की थी।

    2013 के जनवरी-मार्च की अवधि के बाद पहली बार आर्थिक विकास की गति 5 प्रतिशत से कम हो गई, जब जीडीपी 4.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी। शुक्रवार के आंकड़ों ने कई अर्थशास्त्रियों को निराश किया जिन्होंने हाल ही में खत्म हुए त्योहारी सीजन में अपनी मांग में तेजी लाने के लिए अपनी उम्मीद लगा रखी थी।

    वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था उच्च जीएसटी दरों, कृषि संकट, वेतन में कमी और नकदी की कमी की वजह से ‘मंदी’ का सामना कर रही है।

    उपभोग में मंदी के रुझान को अर्थशास्त्री मंदी के तौर पर जिक्र करते हैं, जो कि जीडीपी विकास दर में लगातार गिरावट का प्रमुख कारण है।

    इसके परिणामस्वरूप ऑटोमोबाइल, पूंजीगत वस्तुएं, बैंक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, एफएमसीजी और रियल एस्टेट सहित सभी प्रमुख सेक्टरों में भारी गिरावट आई है।

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