“जेल के नाम से यूं ही किसी आम इंसान की रुह नहीं कांप जाती है। जेल के बारे में जितना कुछ बाहरी दुनिया का इंसान सुनता है, असल जिंदगी में जेल के अंदर उससे कहीं ज्यादा काफी कुछ खतरनाक मौजूद होता है। भले ही मुजरिम न होकर मैं, बहैसियत मुलाजिमान 35 साल तिहाड़ जेल के भीतर रहा। मैंने एक इंसान, मुलाजिमान की नजर से इस करीब चार दशक की जेल की जिंदगी में बतौर जेलर जो देखा, उससे यही कह सकता हूं कि वो जेलर भी कैसा होगा जिसे मुजरिमों ने कभी धमकाया न हो! जेल-जेलर की जिंदगी में धमकी और मुजरिम एक साथ चला करते हैं। यह मेरा निजी अनुभव है। जमाने में बाकी जेलरों की जिंदगी की बात मैं नहीं करता।”
यह बेबाक टिप्पणी तिहाड़ जेल के पूर्व जेलर (तिहाड़ के कानूनी सलाहकार पद से 2016 में सेवा-निवृत्त) और हाल-फिलहाल अपनी किताब ‘ब्लैक-वारंट’ को लेकर सुर्खियों में आये सुनील गुप्ता ने आईएएनएस से विशेष बातचीत के दौरान की। सुनील गुप्ता दिल्ली के डिफेंस कालोनी में ‘ब्लैक वारंट’ के लोकार्पण समारोह में शिरकत करने पहुंचे थे। ब्लैक वारंट में जिस तरह सुनील गुप्ता और उनकी सहयोगी लेखक पत्रकार सुनेत्रा चौधरी ने जो कुछ लिखा और बयान किया है, वो हैरतंगेज है।
ब्लैक वारंट में एक जगह मॉडल जेसिका लाल के सजायाफ्ता कातिल सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा का भी जिक्र आया है। अमूमन सजायाफ्ता मुजरिम को कट्टर-क्रूर की नजरों से ही देखा और अल्फाजों से नवाजा जाता है। ब्लैक वारंट में मगर तस्वीर अलग ही पेश की गई है। ब्लैक वारंट में एक जगह लेखक लिखते हैं, “तिहाड़ जेल में सजायाफ्ता मुजरिमों से मशक्कत यानी मेहनत-मजदूरी कराई जाती है। इसके बदले उन्हें बाकायदा मेहनताना दिया जाता है। मनु शर्मा भी सजायाफ्ता है। तिहाड़ प्रशासन कई साल से तिहाड़ जेल में टीजे के नाम से बन रहे प्रोडक्ट्स से जेल की आय बढ़ाने की लाख कोशिशें कर चुका था। हर युक्ति फेल हो गई। अंत में मनु शर्मा ने जो आइडिया दिया, उसने जेल प्रोडक्ट्स से जेल का सालाना टर्नओवर 3-4 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 15-16 करोड़ रुपये हो गया, जोकि एक मिसाल है।”
किताब के लेखक सुनील गुप्ता ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान ब्लैक-वारंट में दर्ज नैना साहनी हत्याकांड के सजायाफ्ता मुजरिम सुशील शर्मा का जिक्र भी खुलकर किया। ब्लैक-वारंट के मुताबिक, “सुशील शर्मा हत्या के मामले का सजायाफ्ता मुजरिम था। इसमें कोई शक नहीं। जब वो तिहाड़ जेल में पहुंचा तो उसका व्यवहार अजीब था। हां, धीरे धीरे मैंने उसके स्वभाव में जो बदलाव देखे, वो आज तक मेरे जेहन में हैं। जेल के शुरुआती दिनों में खुद की हर बात मनवाने वाला सुशील बाद में हर किसी की बात मानकर बेहद परिपक्व आचार-विचार-व्यवहार वाला मुजरिम बन गया। यह मैंने अपनी आंखों से देखा।”
जेल में खूंखार मुजरिम और जेल स्टाफ के बीच सामंजस्य के सवाल पर तिहाड़ के पूर्व जेलर सुनील गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, “बाकी जेल स्टाफ की कह नहीं सकता हूं। हां, बहैसियत जेलर मुझे अक्सर धमकियां मिलती रहती थीं। जेलर की नौकरी ने तो मुझे यही दिखाया है कि भला वो जेलर भी क्या जिसे धमकियां न मिलें! धमकी तो जेलर की जिंदगी का हिस्सा होती हैं। जेल की नौकरी के दौरान भी और जेल की नौकरी से रिटायर होने के बाद भी। यह जेलर पर निर्भर करता है कि वो इन धमकियों से सामना कैसे करेगा?”
ब्लैक-वारंट में अन्ना हजारे की तिहाड़ जेल यात्रा से लेकर और तमाम यादगार किस्सों का भी जिक्र बेबाकी से किया गया है। ब्लैक वारंट में एक जगह लेखक ने लिखा है, “तिहाड़ जेल के एक महानिदेशक की कारगुजारियां लेकर मैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास दो बार पहुंचा। मैंने सब कुछ मुख्यमंत्री को बेबाकी से बता दिया। यह सोचकर कि जेल में हो रहे कथित काले कारोबार पर वे लगाम लगाएंगे। मगर परिणाम ढाक के तीन पात ही सामने आया।” बकौल सुनील गुप्ता, “तब महसूस हुआ कि 35 साल की जेल की नौकरी में भी अभी जेल की कथित राजनीति सीख पाने में मैं फिसड्डी ही रह गया।”