उत्तर प्रदेश में महोबा जिले के सिचौरा गांव में मौजूद दो हजार साल पुराने जुड़वां कल्पवृक्ष धराशायी होने के कगार पर हैं। हाल ही में वृक्ष का एक मुख्य शाखा टूट कर गिर गई। इस धरोहर को बचाने से वन विभाग भी पीछे हट रहा है। महोबा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर सिचौरा गांव में करीब दो हजार साल पुराने जुड़वा कल्पवृक्ष हैं। यहां के लोग इसे धरोहर मानकर पूजा करते हैं। लेकिन रखरखाव और प्रशासनिक उपेक्षा की वजह से यह धराशायी होने के कगार पर है। वन विभाग भी इनको बचाने से कतरा रहा है।
पेड़ के चारों तरफ साफ-सफाई करने वाले गांव के वाशिंदे सचिन खरे बताते हैं, “यह जुड़वां कल्पवृक्ष लोगों की आस्था से जुड़ा है। आस्थावान लोग रोजाना यहां पूजा करने आते हैं, लेकिन सरकारी उपेक्षा के चलते यह धराशायी होने के कगार पर है।”
बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने कहा कि उन्होंने मंगलवार को सिचौरा गांव में इन दुर्लभ वृक्षों की हालत देखी है, जिसकी एक मुख्य शाखा हाल ही में टूटकर जमीन पर गिर गया है। पेड़ में कीड़े लग चुके हैं, और अगर वन विभाग जल्द रखरखाव नहीं करता तो यह धरोहर नष्ट हो जाएगी।
उन्होंने बताया, “इसी साल 12 मई को राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक डॉ. रामसेवक चौरसिया को लेकर वहां गया था। उन्होंने कल्पवृक्ष की छाल और पत्तियों के परीक्षण के बाद बताया था कि ‘ये ओलिएसी कुल के जुड़वां कल्पवृक्ष हैं। यह लगभग दो हजार साल पुराना हो सकता है। इस तरह के दुर्लभ वृक्ष समूचे देश में 9-10 ही हैं। सबसे पुराना कल्पवृक्ष बाराबंकी के रामनगर क्षेत्र में पांच हजार साल पुराना है। एक कल्पवृक्ष का पेड़ हमीरपुर जिले में भी है, जो बेहतर स्थिति में है’।”
पाटकर ने बताया कि “इस कल्पवृक्ष के रखरखाव के बारे में प्रभागीय वनाधिकारी से भी अनुरोध किया था, मगर वह इसके संरक्षण के लिए आगे नहीं आए।”
प्रभागीय वनाधिकारी रामजी राय ने बुधवार को कहा कि उन्हें इस कल्पवृक्ष की जानकारी नहीं थी, लेकिन अब अधीनस्थों को मौके पर भेज कर उसकी जांच करवाएंगे और रखरखाव का समुचित इंतजाम किया जाएगा।
हिंदू मान्यता के अनुसार, कल्पवृक्ष को देवलोक का वृक्ष माना जाता है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में एक कल्पवृक्ष भी था। मान्यता यह भी है कि इससे जिस वस्तु की याचना की जाती है, उसे यह प्रदान कर देता है। इस वृक्ष का नाश कल्पांत तक नहीं होता है।