मनमोहन पर विपक्ष का विरोध आज बड़े ही नाटकीय ढंग से ख़त्म हो गया। आज से पहले इस मुद्दे पर कांग्रेस ने इस प्रकार आक्रमक मोड अपना रखा था जिससे लग रहा था बिना पीएम के माफ़ी के इस बार राज्य सभा का सत्र न चल पाएगा लेकिन आज कुछ ऐसा हुआ जिससे विपक्ष का विरोध ही संदेह के घेरे में आ गया।
मामले में स्पष्टीकरण की मांग कर रही विपक्ष मात्र अरुण जेटली के चार लाइन बोलने पर न सिर्फ चुप हो गयी बल्कि एक दम जेंटल पार्टी भी बन गयी। इससे पहले मनमोहन के मुद्दे पर सिवाय माफीनामे के विपक्षी पार्टी कुछ और नहीं सुनना चाहती थी।
अरुण जेटली का बयान
मनमोहन पर जिस तरह कांग्रेस ने सुनामी जैसा विरोध प्रदर्शन किया था, लग रहा था बीजेपी को अब सदन में कुछ कह पाना मुश्किल होगा लेकिन आज अरुण जेटली के मात्र चार लाइन के बयान ने सबकुछ ठीक कर दिया।
अपने बयान में अरुण ने कहा कि “पीएम मोदी ने अपने भाषण में पूर्व पीएम मनमोहन या पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की देशभक्ति और निष्ठा पर किसी तरह का सवाल नहीं खड़ा किया था और न ही उनकी ऐसी कोई मंशा थी” अरुण ने बयान दिया कि “हम इन नेताओं का सम्मान करते हैं, साथ ही देश के लिए उनकी प्रतिबद्धता को भी मानते हैं।”
मात्र इतना कहते ही पहाड़ की तरह अटल कांग्रेस पार्टी मोम की तरह पिघल गयी ऐसा लगा कि बड़े ही सुनियोजित ढंग से इस विरोध को जिस तरह से शुरू किया गया था उसी तरह ख़त्म भी कर दिया गया। गुलाम नबी आजाद ने अरुण के इस बयान पर विपक्ष की तरफ से स्टैंड लिया। आजाद ने कहा कि ” हम खुद प्रधानमंत्री पद की गरिमा को नहीं गिराना चाहते हैं और चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों का विरोध करते है, प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई भी अपमानजनक बयान नहीं दिया जाना चाहिए।”
मनमोहन के मुद्दे पर कांग्रेस ने सचिन तेंदुलकर को सदन में बोलने नहीं दिया था
अब ऐसे में यह सवाल उठाया जाना लाजमी है कि आखिर अचानक कांग्रेस को ऐसा क्या हुआ जो वो एक दम शांत हो गयी? अरुण के इस बयान में ऐसा क्या था जिससे कांग्रेस पार्टी ने कई दिनों से चले आ रहे विरोध को खत्म कर दिया?
इससे पहले भी तो सदन के कई नेता कांग्रेस से विरोध खत्म करने की गुजारिश कर चुके थे। मनमोहन के मुद्दे पर कांग्रेस का विरोध कुछ दिन पहले तक तो इस कदर हावी था कि उसने सचिन तेंदुलकर को भी सदन में कुछ नहीं बोलने दिया था।
मनमोहन के मुद्दे पर जया बच्चन और खुद वेंकैया नायडू के समझाने के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला था। कांग्रेस पार्टी माफ़ी से नीचे कुछ नहीं सुनना चाहती थी।