पाकिस्तान अपनी खस्ताहाल अर्थव्यस्था को बचाने के लिए अधिक निवेश और विभिन्न संस्थाओं से राहत पैकेज लेने के लिए उत्सुक है। हालाँकि इससे पाकिस्तान के नई परियोजनाओं में सुस्ती आ सकती है और यह पाक की अर्थव्यवस्था को आर्थिक संकट की तरफ ले जाएगा।
हाल ही में अंतररष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस महीने अपने एक टीम को इस्लामाबाद भेजने का निर्णय लिया था जो बजट घाटने को पटाने के लिए तरीको का सुझाव देगी। जुलाई में वैश्विक आर्थिक संस्था ने पाकिस्तान को छह अरब डॉलर की राशी देने का निर्णय लिया था। देश के बड़े वित्तीय घाटे और कमजोर मुद्रा नीतियों के कारण इस्लामाबाद आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
पाक मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईएमएफ की टीम वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करेगी। पाकिस्तान में चीनी राजदूत याओ जिंग ने भी ऐलान किया था कि पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं में बीजिंग एक अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रहा है। विशेषकर सीपीईसी, जो बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रान्त से जोडती है।
साउथ एशिया हेरिटेज फाउंडेशन के रिसर्चर स्कॉलर जेफ्फ एम स्मिथ ने कहा कि “पाकिस्तान ने साला 2018 से 19 तक विदेशो से 16 अरब डॉलर की रकम का उधार लिया है, इसका 42 फीसदी यानी 6.78 अरब डॉलर चीन ने दिया है। सरकार ने आईएमएफ का दरवाजा भी खटखटाया था और जुलाई में पाक को छह अरब डॉलर देने को मंज़ूर कर दिया।
इसके आलावा यूएई और सऊदी अरब जैसे देशो ने भी पाकिस्तान को सहायता राशि दी है ताकि नकदी के संकट से उभरा जा सके। पाकिस्तान का वार्षिक वित्तीय घाटा बीते तीन दशको में साल 2018-19 में सबसे अधिक 8.9 फीसदी रहा है।
पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने देश के आर्थिक ढाँचे को सुधारने और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने का वादा किया था। हालाँकि सब इसके उलट हो रहा है। वास्तविकता में पाकिस्तान में तेल, गैस और बिजली की कीमते निरंतर बढती जा रही है। पाकिस्तान को मई में आईएमएफ से 99.14 करोड़ डॉलर की पहली किश्त मील गयी थी।